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बांग्लादेश की आज़ादी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

2024-12-14  विप्लव विकास

“71 का संकट और संघ”

 

यह सर्वस्वीकृत सत्य है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और राष्ट्र-सेवा एक-दूसरे के पर्याय हैं। राष्ट्र के समक्ष जब भी कोई आपदा आई है संघ के स्वयंसेवकों ने सेवा दूत बन कर निस्वार्थ भाव से यथाशक्ति अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया है। आपदा चाहे राष्ट्र के विभाजन की विभिषिका के रूप में आई हो या भुज के भूकंप अथवा केदारनाथ में प्रलयकारी बादल फटे हों, रेल दुर्घटना हो या कोरोना की महामारी, युद्ध से लेकर आंतरिक सुरक्षा और सड़क पर ट्रैफिक नियंत्रण तक जहां भी आवश्यकता हुई संघ के स्वयंसेवक आगे आ ग‌ए। 1962 के भारत-चीन युद्ध के समय वामपंथी मजदूर यूनियनों ने आयुध निर्माणी संयंत्रों में हड़ताल कर भारत को युद्ध की स्थिति में कमजोर करने का पूरा प्रयास किया था परन्तु इन प्रतिष्ठानों में कार्यरत भारतीय मजदूर संघ के कार्यकर्ताओं ने अहर्नीश काम कर उत्पादन और  आपूर्ति को सुचारू रूप से जारी रखा। इसी प्रकार 1965,1971 और 1999 के भारत-पाक युद्ध में भी स्वयंसेवकों ने अपने उज्जवल राष्ट्रीय चरित्र एवं जाग्रत चेतना का परिचय दिया। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारत का पूर्वी हिस्सा, पश्चिम बंगाल सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ। पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) से शरणार्थीयों का आना तो प्रत्यक्ष युद्ध की घोषणा से बहुत पहले ही प्रारंभ हो चुका था। और इस असहाय जन समूह तथा पीड़ित मानवता की सहायता के निमित्त संघ के स्वयंसेवकों का सेवा कार्य भी तभी से प्रारंभ हो गया। स्वयंसेवकों के योगदान और युद्ध के समय उनके द्वारा किए गए कार्यों का एक अति संक्षिप्त विवरण हमें बांग्ला में प्रकाशित 'एकातोरेर संकट ओ संघो' नाम पुस्तिका में मिलता है। हिंदी के पाठकों के लिए विप्लव विकास ने उसी पुस्तिका का हिंदी अनुवाद किया है। 1971 के ऐतिहासिक युद्ध विजय के 51 वें वर्षपूर्ति पर पढ़िए  '71 का संकट और संघ' ( 16-18 दिसंबर 2022 में स्वदेश में तीन दिनों तक इस शृंखला का प्रकाशन हुआ था)  

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संघ का कार्य आत्मविस्मृत और असंगठित समाज को संगठित कर देशभक्ति से ओतप्रोत करना है।  संघ का हर स्वयंसेवक देशभक्ति के इस महान मंत्र से प्रेरित है।  इसलिए जब भी देश में कोई बड़ा संकट या विपदा आती है, संघ के स्वयंसेवक उस संकट का सामना करने के लिए और उत्पीड़ित लोगों की पीड़ा को कम करने, उनके प्रति सेवा और सहानुभूति का हाथ बढ़ाने के लिए अनायास सामने आ जाते हैं। संघ के स्वयंसेवक सुख-दुख की हर स्थिति में देशवासियों को साथ लेकर समाज के प्रति सच्चे मित्र का कर्तव्य निभाते हैं।  संघ के समक्ष इस कर्तव्य को निभाने का आह्वान अनेक बार आया है। संघ के स्वयंसेवकों ने राष्ट्र के आह्वान पर प्रत्येक बार सफलतापूर्वक अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया है।  पिछले साल, जब भारी बारिश के कारण, उत्तर बंगाल में महानंदा नदी उफान पर थी और शहर के निकट वाला बांध टूटने वाला था, तब संघ के लगभग 150 स्वयंसेवक आधी रात को घटनास्थल पर पहुंचे और पूरी रात बांध की मरम्मती का काम करते रहे। इस प्रकार निद्रामग्न मालदा शहर को बाढ़ के निश्चित विनाश से स्वयंसेवकों ने बचाया।  दो साल पहले भारी बारिश के कारण जलपाईगुड़ी कस्बा पानी में बीस फीट डूब गया था।  कई लोग मारे गए । यह बुरी खबर सुनते ही निकट की सिलीगुड़ी शाखा के स्वयंसेवक भोजन, कपड़े और अन्य राहत सामग्री लेकर ट्रक से वहां पहुंचे और पीड़ितों की सेवा में लग गए। वे जलपाईगुड़ी पहुंचने वाले पहले राहत दल थे।  

 

सन् 1965 की बात है। भारत-पाक युद्ध के दौरान भारतीय सेना का ढेर सारा हथियार ट्रकों से पठानकोट रेलवे स्टेशन पहुंचा था परन्तु स्थानीय कुली हड़ताल पर चले गए थे, इसलिए उन सभी हथियारों को गाड़ियों से उतारने में कठिनाई आ रही थी। खबर सुनते ही पठानकोट शाखा के सैकड़ों स्वयंसेवक दौड़ पड़े और दुश्मन की गोलीबारी और कड़ाके की ठंड के बावजूद सारी रात काम करते हुए सारा सामान ट्रकों से उतार दिया। स्वाधीनता के तुरंत बाद, जब कश्मीर पर पाकिस्तानी आक्रमणकारियों ने आक्रमण किया, तो संघ के स्वयंसेवक क्षतिग्रस्त श्रीनगर हवाई अड्डे की मरम्मत के लिए आगे आए। पाकिस्तान की गोलाबारी से उनमें से कुछ की मृत्यु हो गई।  लेकिन इसके बावजूद स्वयंसेवकों ने हार नहीं मानी और हवाई क्षेत्र की मरम्मत के लिए तीन दिनों तक अथक परिश्रम किया, जिससे भारतीय वायु सेना के लिए हवाई क्षेत्र में उतरना और पाकिस्तानी आक्रमणकारियों को खदेड़ना संभव हो पाया।  

 

ऐसी कई घटनाओं का स्मरण किया जा सकता है।  आसेतुहिमाचल पूरे भारत में संघ के स्वयंसेवक अपनी महान संगठित शक्ति के साथ, सदा जाग्रत एवं सर्वदा प्रस्तुत रहते हुए मातृभूमि के प्रति अपना कर्तव्य निभाते रहे हैं। पिछले भारत-पाक युद्ध के समय भी ऐसा ही हुआ। जैसे ही संघर्ष शुरू हुआ, पूजनीय सरसंघचालक श्री माधवराव गोलवलकर ने देशवासियों और स्वयंसेवकों से एक उत्साही आह्वान किया। उन्होंने देशवासियों से सभी मतभेदों को भुलाकर पाकिस्तान के हमले को रोकने के लिए एकजुट रहने की अपील की।  उन्होंने कहा कि "केवल वही एकता हमें जीत की ओर ले जाएगी जो मातृभूमि के प्रति प्रेम और निस्वार्थ देशभक्ति से पैदा हुई हो।" उन्होंने कहा कि  "पाकिस्तान हमसे प्रत्यक्ष युद्ध कर रहा है। हमारी सरकार और हमारी सेना इस चुनौती का सामना करने में पूर्णतः सक्षम है, परन्तु लोगों का मनोबल बनाए रखना आवश्यक है। कल-कारखानों और खेतों में भी उत्पादन मानकों को बनाए रखा जाना चाहिए। लड़ने वाले सैनिकों को लगे कि उनके पीछे पूरा देश है। नागरिक सुरक्षा, रक्तदान, घायल सैनिकों की सेवा आदि तत्काल शुरू हो।”    श्रीगुरुजी ने स्वयंसेवकों से रक्षा प्रणाली की पूरी सहायता करने और किसी भी जिम्मेदारी को लेने के लिए तैयार रहने का आग्रह किया।  

 

पाकिस्तान की वजह से बांग्लादेश की समस्या ने न केवल भारत में कई समस्याएं पैदा की हैं, बल्कि इसके परिणामस्वरूप, पाकिस्तान के भीतर विभिन्न आंतरिक संघर्ष भी सिर पर आ गए हैं।  इन आंतरिक झगड़ों से देशवासियों का ध्यान भटकाने के लिए पाकिस्तान ने यह बताने की कोशिश की है कि बांग्लादेश की समस्या भारत ने पैदा की है और इस तरह वहां के लोग उससे नफरत करते हैं।  उसने जन-उन्माद को युद्ध के लिए जगा दिया है। नतीजतन, एक डर है कि हमारे देश पर जल्द ही पाकिस्तान द्वारा हमला किया जाएगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ केंद्रीय कार्यकारी मंडल युद्ध की शुरुआत से बहुत पहले, जब भारत-पाक संबंध तेजी से बिगड़ रहे थे और पाकिस्तान भारत पर आक्रमण करने की तैयारी कर रहा था, तब अक्टूबर में संघ की केंद्रीय कार्यकारिणी ने दिल्ली में बैठक की और संकल्प लिया कि यदि पाकिस्तान ने  भारत पर आक्रमण किया तो संघ पाकिस्तान को खदेड़ने के लिए अपनी पूरी ताकत का इस्तेमाल करेगा। संघ सरकार का समर्थन करेगा।   केंद्रीय कार्यकारी मंडल के प्रस्ताव का सार है:  

"भारत सरकार से अपील करते हुए आग्रह करते हैं कि अगर पाकिस्तान इस तरह के लापरवाह कृत्यों में शामिल है तो वह साहस और धैर्य दिखाएं और हमारी वीर सेना की मदद से पाकिस्तान को ऐसा सबक सिखाएं कि भविष्य में भारत को फिर से शर्मिंदा करने की उनकी क्षमता हमेशा के लिए खो जाए। इससे बांग्लादेश की समस्या भी संतोषजनक ढंग से हल हो जाएगी और सभी शरणार्थी शांति और सम्मान के साथ अपने घरों को लौट सकेंगे।"  

 

प्रधानमंत्री श्रीमती गांधी ने लोगों से छोटे राजनीतिक मतभेदों को भूलकर पक्षपातपूर्ण हितों से ऊपर उठने और आंतरिक शांति और व्यवस्था बनाए रखने का आह्वान किया और पाकिस्तान द्वारा भारत पर किसी भी हमले की स्थिति में सरकार और सेना के साथ पूरा सहयोग करने का अनुरोध किया। केंद्रीय कार्यकारी मंडल को भी विश्वास है कि इस बार भी संघ के स्वयंसेवक देशवासियों के साथ अग्रिम पंक्ति में खड़े होंगे और देश की रक्षा के लिए पहले की तरह काम करेंगे।  

 

संघ की पश्चिम बंगाल की शाखाओं का तीन दिवसीय सम्मेलन दिसंबर के अंतिम सप्ताह में होने वाला था।  कार्यक्रम में 5000 स्वयंसेवकों को शामिल करने का निर्णय लिया गया था।  लेकिन जैसे ही दिसंबर के पहले सप्ताह में युद्ध छिड़ गया, संघ के अधिकारीयों ने बैठक की और निर्णय लिया कि आपातकाल की इस स्थिति को देखते हुए सम्मेलन को स्थगित कर दिया जाएगा।  

 

 

संघ के निर्देश पर स्वयंसेवकों ने पश्चिम बंगाल के गांवों और कस्बों में और विशेषकर सीमावर्ती इलाकों में जनजागरण का काम हाथ में लिया। युद्ध की स्थिति के दौरान, देशवासियों का मनोबल और आत्मविश्वास बढ़ाना और सभी प्रकार की नागरिक सुरक्षा गतिविधियों में भाग लेना स्वयंसेवकों का मुख्य कर्तव्य बन गया। युद्ध के दौरान संघ ने वास्तव में दूसरा मोर्चा संभालने का काम किया।  संघ की पश्चिम बंगाल शाखा के संघचालन  के अध्यक्ष श्री  केशवचंद्र चक्रवर्ती ने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल श्री ए एल डायस और पश्चिम बंगाल मामलों के केंद्रीय  मंत्री श्री सिद्धार्थ शंकर रॉय को पत्र लिखकर कहा कि पश्चिम बंगाल के स्वयंसेवक सुरक्षा व्यवस्था में हर संभव तरीके से सरकार के साथ सहयोग करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने इस संबंध में अखबार में एक बयान भी दिया।  

 

श्री ए एल डायस और श्री राय को लिखे उनके पत्र का सार इस प्रकार है:  

 

 “बांग्लादेश में पाकिस्तानी सेना के अत्याचार और संलग्न सीमावर्ती क्षेत्रों में पाकिस्तानी सैनिको की व्यापक मौजूदगी के कारण हमारे राष्ट्र के समक्ष जो चुनौती आई है, उसका सामना करने के लिए सरकार को सभी प्रकार का सहयोग करने के लिए प्रस्तुत रहने हेतु प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री और अन्यान्य राष्ट्रीय नेताओं ने देश से जो आह्वान किया है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यथोप्युक्त गुरुत्व के साथ उस आह्वान को ग्रहण करता है। इस संकट काल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पश्चिम बंगाल की शाखा की ओर से मैं आपको हमारे पूर्ण सहयोग का वचन देता हूँ। संबंधित अधिकारियों द्वारा हमारे संगठन को दिए गए सभी निर्देशों का हम यथाशक्ति पालन करेंगे।”  

 

बालुरघाट के पास चक्रमप्रसाद गांव की संघ शाखा के मुख्य शिक्षक श्रीचुरका मुर्मू का नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखे जाने के योग्य है। 18 अगस्त 1971 को, उन्होंने स्थानीय सीमा प्रहरियों को गांव में घुसपैठ करने वाले पाक सैनिकों की उपस्थिति के बारे में सूचित किया और बाद में जब सीमा रक्षक दल उनका सामना कर रहे थे तब श्री मुर्मू उनकी मदद कर रहे थे। उस समय पाक सैनिकों द्वारा चलाई गई गोलियों से वह मारा गया था।  श्रीमुर्मू  की आत्म-बलिदान की कहानी ने पूरे क्षेत्र में बहुत उत्साह पैदा किया।  पश्चिम बंगाल के संघचालक श्री केशव चंद्र चक्रवर्ती ने अमर बलिदानी  श्री मुर्मू के सम्बन्धियों से भेंट की और उन्हें सांत्वना दी। उनकी मदद के लिए एक सौ एक रुपये और कपड़े दिए। उन्होंने चुरका मुर्मू के परिवार को सांत्वना देते हुए कहा कि चुरका जैसा पुत्र हर घर में पैदा हो।  

 

सरकार के आह्वान पर पिछले चार दिसंबर को घायल सैनिकों के परिवारों को आर्थिक मदद, घायल सैनिकों को रक्तदान करने आदि के लिए मालदा नागरिक समिति नाम की एक संस्था का गठन किया गया था।  संघ के मालदा विभाग प्रचारक श्रीवंशीलाल सोनी उक्त समिति में संघ के प्रतिनिधि थे। उनकी सलाह पर, मालदा नागरिक समिति ने युद्ध के मैदान से लौटने वाले दिग्गज सैनिकों के स्वागत के लिए एक स्वागत केंद्र खोलने का निर्णय  किया!  

 

इन केंद्रों को चलाने की सभी जिम्मेदारी स्थानीय अधिकारियों की इच्छा के अनुसार संघ के स्वयंसेवकों को सौंपी गई।  इस केंद्र पर जवानों को चंदन-तिलक लगाकर, फूल आदि से स्वागत कर उनके चाय और जलपान की व्यवस्था की गई। इस केंद्र को चलाने में करीब तीन सौ स्वयंसेवक सहयोग कर रहे थे। यह केंद्र इक्कीस दिनों तक संचालित किया गया और इस केंद्र पर तैंतीस हजार छह सौ षड़षठ सैनिकों और अधिकारियों का स्वागत किया गया था। मालदा नागरिक समिति के अध्यक्ष और मालदा के जिला समाहर्ता श्री स्वयंभूप्रसाद दे (आई ए एस) ने बाद में एक पत्र के माध्यम से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, मालदा विभाग के प्रचारक श्रीवंशीलाल सोनी को धन्यवाद दिया।  पत्र नीचे उद्धृत किया गया है:  

 

मालदा जिला समाहर्ता कार्यालय   

तांग मालदा  

22 जनवरी '72  

मेमो नंबर 65/सी  

 

प्रेषक- श्री एस, पी, दे  आई.ए.एस  

जिला समाहर्ता, मालदा  

 

प्राप्तकर्ता-श्रीवंशीलाल सोनी  

विभाग प्रचारक, आरएसएस, मालदा  

 

महाशय,  

 

आपने और आपके  समर्पित स्वयंसेवक वाहिनी ने मंगलबाड़ी, मालदा में जवान स्वागत केंद्र को 15 दिसंबर '71 से 4 जनवरी'72 तक दिन-रात संचालित रखने में एक अतुलनीय कार्य किया है। इसके लिए मुझे आप सभी का अभिनंदन करते हुए अत्यंत आनंद की अनुभूति हो रही है।   

 

मेरा आभार शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है।  मैं मालदा नागरिक समिति के अध्यक्ष और मालदा के जिला समाहर्ता के रूप में आपको धन्यवाद देता हूं।  

 

भवदीय  

(स्वा) एस पी दे  

जिला सम्हार्ता, मालदा  

 

 

 

मालदा में जवान स्वागत केंद्र के अधिशेष वस्तुओं को  बेचकर तथा उनके विनिमय से प्राप्त, बिस्कुट, टॉफ़ी, बेबी फ़ूड, कंघियाँ आदि लेकर कार्यकर्ता बांग्लादेश के अंदर राजशाही जिले के हरिनगर और बरघरिया के तबाह गांवों में गए और उन्हें वहाँ वितरित किया।  

 

बालुरघाट पश्चिम बंगाल का एकमात्र जिला शहर था जहां पाकिस्तानी सेना युद्ध शुरू होने के कई दिनों पहले से ही लगातार गोलाबारी कर रही थी, जिसमें कई नागरिक मारे गए थे।  इस समय कई लोगों ने शहर छोड़ना शुरू कर दिया। लेकिन स्थानीय शाखा के किसी भी स्वयंसेवक ने अपना स्थान नहीं छोड़ा। वे सभी घायलों को अस्पताल ले जाने, नागरिक सुरक्षा आदि में मदद करने के अलावा स्थानीय लोगों का मनोबल वापस लाने का काम करते रहे। संघ की पश्चिम बंगाल शाखा के संघचालक श्री केशवचंद्र चक्रवर्ती ने पश्चिम दिनाजपुर में एक गाँव से दूसरे गाँव का प्रवास किया। उनके मजबूत नेतृत्व के परिणामस्वरूप, बालुरघाट और आसपास के गांवों के लोगों में विश्वास जगा और उन सभी ने सरकारी अधिकारियों के आदेश के बावजूद अपने क्षेत्रों को छोड़ने से इनकार कर दिया। पाकिस्तानी गोलाबारी की अनदेखी करते हुए वे लोग सुरक्षा व्यवस्था में मदद करते रहे।  इससे सेना में विशेष उत्साह फैल गया। दार्जिलिंग जिले के स्वयंसेवक उस जिले के मृत सैनिकों की सूची तैयार कर उनके घर जाकर शोक संतप्त परिवारों को सांत्वना देने के साथ-साथ आर्थिक सहायता प्रदान किए।  

 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा संचालित वास्तुहारा सहायता समिति की स्थापना 1950 में हुई थी। इस समिति ने उस समय पूर्वी बंगाल के लाखों शरणार्थियों के राहत और पुनर्वास के लिए काम किया और इस उद्देश्य के लिए उन्होंने पूरे भारत से सहायता सामग्री एकत्र की। पिछले 25 मार्च के बाद, जब पाकिस्तानी अधिकारियों की नारकीय यातना के कारण बांग्लादेश से शरणार्थी सुरक्षित आश्रय के लिए भारत आते रहे, तो इस स्थिति से निपटने के लिए वास्तुहरा सहायता समिति आगे आई। समिति के द्वारा मई की शुरुआत में बनगांव के पास बैरा सीमा पर गैरापोटा में एक राहत शिविर और आसपास के कुछ अन्य इलाकों में कई राहत शिविर और औषधालय खोले गए। इन शिविरों से करीब पचास हजार शरणार्थियों को राशन बांटा गया। संघ के अखिल भारतीय अधिकारियों में से कई ने समय-समय पर गैरापोटा शिविर का दौरा किया।  श्री एकनाथ रानाडे, श्री माधवराव मुले, श्री भाउराव देवरस ने अलग-अलग समय पर शिविर का दौरा किया।  

 

वास्तुहरा सहायता समिति ने सच्चे अर्थों में शरणार्थियों की सेवा के व्रत का पालन किया। इसलिए यहां उनकी भूमिका सिर्फ राशन बांटने की नहीं थी। शरणार्थी भाइयों और बहनों की विभिन्न तरीकों से सेवा करना और अपने गाँव से जिस नारकीय अत्याचार और अपमान को सह कर वे यहाँ आये थे उन शरणार्थियों के दुःख को दूर करने का प्रयास कर, जितना संभव हो उनके मन में जीवन तथा मानव मूल्यों के प्रति आस्था तथा विश्वास जगाना यह वास्तुहरा सहायता समिति का उद्देश्य था।  

 

संघ के स्वयंसेवकों ने वास्तुहारा सहायता समिति के माध्यम से इस कठिन व्रत को भक्ति के साथ निभाया।  पश्चिम बंगाल के विभिन्न जिलों और पश्चिम बंगाल के बाहर कुछ स्थानों से कार्यकर्ता इस महान कार्य में सहयोग देने  के लिए स्वेच्छा से आगे आए।  पिछले साल राखी बंधन के दिन,वास्तुहरा सहायता समिति के कार्यकर्ताओं ने गारापोटा और आसपास के क्षेत्रों में पचास हजार शरणार्थियों के बीच मिठाई बांटी। प्रेम और बंधुत्व के प्रतीक के रूप में उन सभी के हाथों पर राखी बांधी। इसके साथ ही उन्होंने सभी को रक्षाबंधन उत्सव के शुभ-आह्वान का पत्र दिया। शोक संतप्त शरणार्थी प्रेम के इस मधुर स्पर्श से अभिभूत थे।कम से कम एक दिन के लिए शरणार्थी शिविर के दुख, खुशी में बदल गए। समिति ने गारापोटा में तीन चिकित्सा केंद्रों प्रारंभ किया। भारत के विभिन्न राज्यों के कुछ डॉक्टर उनके संचालन में सहयोग के लिए आए थे। कभी-कभी शरणार्थियों के बीच कपड़े वितरित किए जाते थे।  पूजा (दूर्गा पूजा) से पहले समिति के सचिव श्री श्यामचंद मल्लिक ने शरणार्थी माताओं और बहनों के बीच 5500 नई साड़ियों का वितरण किया। इसके अलावा, शरणार्थीयों के बच्चों के लिए यहां विवेकानंद विद्यापीठ नामक एक अवैतनिक विद्यालय भी शुरू किया गया था।  इस स्कूल को चलाने के लिए कुछ शिक्षकों और स्वयंसेवकों ने स्वेच्छा से काम किया।  संघ के आह्वान पर भारत के विभिन्न भागों से धन, वस्त्र, औषधि आदि एकत्र किए गए और शरणार्थी भाइयों और बहनों की सेवा के कार्य में भाग लेने के लिए विभिन्न स्थानों से कार्यकर्ता समूहों में आगे आए।  यह काम भी दिसंबर के अंत तक चला।  

 

वास्तुहारा सहायता समिति द्वारा मालदा में बीमार शरणार्थियों के लिए तीन चिकित्सा केंद्र चलाए गए। पूर्वी सीमा पर जैसे ही युद्ध छिड़ गया, वास्तुहारा सहायता समिति ने बोयारा के पास सैन्य अस्पताल की तलाश की, यह देखने के लिए कि क्या उन्हें किसी राहत सामग्री की आवश्यकता है। वहां के अधिकारियों ने बताया कि उन्हें रक्त भंडारण के लिए एक रेफ्रिजरेटर चाहिए। समिति के कार्यकर्ताओं ने चौबीस घंटे के अंदर एक बड़ा रेफ्रिजरेटर का व्यवस्था किया और सेना को उपहार में दिया।  इसके अलावा, चादरें, रबड़ के कपड़े आदि भी प्रदान किए। पेट्रापोल और बांग्लादेश की सीमा पर स्थित झिकारगाचा में भी समिति ने शिविर में आने वाले जवानो के लिए स्वागत केंद्र खोला. वहां जवानों के लिए जलपान और चाय की व्यवस्था थी। देर रात में भी सैनिकों के काफिले का गर्म चाय से स्वागत किया गया। युद्ध के थके हुए सैनिक इस गर्मजोशी भरे आतिथ्य से अभिभूत थे।  

 

पूरे पश्चिम बंगाल में संघ के स्वयंसेवक घायल जवानों के लिए रक्तदान करने के लिए आगे आए।  संघ की कोलकाता शाखा के कार्यालय को सैन्य कार्यालय से रक्तदान करने के लिए कई फोन आए।  हर बार संघ के स्वयंसेवकों की भीड़ उमड़ पड़ी और रक्तदान कर मातृभूमि का कर्ज चुकाया। संघ द्वारा जवानों को कई बार सूखे मेवों के पैकेट भेंट किए गए।  21 दिसंबर को जेसोर कैंटोनमेंट में मेजर कौशल को भोजन के सात हजार पैकेट सौंपे गए।  31 दिसंबर को फोर्ट विलियम में, पूर्वी क्षेत्र के सेना कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा को पश्चिम बंगाल के संघचालक जी ने सूखे मेवों के 8,000 पैकेट सौंपे।  


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