प्रिय पाठक,
नमस्कार!
जब आप ये पढ़ रहे हैं, हो सकता है, चारों तरफ़ क्रिसमस की चमक-दमक दिखाई दे रही हो। बाजारों में हलचल, पेड़ों पर सजी हुई रोशनी, और गिफ्ट्स से भरे हुए बड़े-बड़े थैले... है ना एक अलग ही रौनक? वैसे, सोचने वाली बात यह भी है कि ये त्योहार सिर्फ़ christians का ही पर्व नहीं रह गया है? अब यह पूरे विश्व में एक cultural आयोजन बन चुका है। हर साल 25 दिसंबर को लोग रिलिजन , culture , और सीमाओं से परे इसे मनाते हैं। पर 25 दिसंबर को ही क्यों मनाते हैं? क्या इसके पीछे कोई वैज्ञानिक तथ्य है या कहानी या कुछ और ही कारण है?
मुझे तो exact कोई कारण नहीं पता।
कुछ लोग कहते हैं कि इस दिन यीशु मशीह का जन्म हुआ था। पर इसके बारे में सही जानकारी कहाँ है कि उनका जन्म 25 दिसंबर को ही हुआ था ? खैर, इस पर फिर कभी बात की जाएगी।

अभी तो बस christmas की चहल-पहल-रौनक-और enjoyyyyyyyy…
लेकिन क्या हमने कभी यह सोचा है कि हमारी यह रौनक हमारे पर्यावरण पर कितनी गहरी छाप छोड़ रही है ? इस चमचमाते क्रिसमस ट्री से लेकर प्लास्टिक डेकोरेशन तक, जो क्षण भर की खुशी लाते हैं, वे धीरे-धीरे प्रकृति को चोट पहुँचा रहे हैं। जब मैंने पहली बार इस बारे में सोचा, तो लगा कि यह उत्सव, जो ख़ुशी और प्यार का प्रतीक माना जाता है, कहीं अंधाधुंध उपभोग और अनजाने में नुकसान का कारण तो नहीं बन रहा है।
आपने देखा होगा, आजकल क्रिसमस के नाम पर जो धूम मचती है, वह अक्सर "खर्चा" और "शानदार जश्न" तक सीमित रह जाती है। रोशनी की चमक में छुपी हुई हर एक "पेड़" के लिए कटे जंगल की सच्चाई शायद हमारे उत्सव की मुस्कान को थोड़ा फीका कर दे। और जब बात उपहारों की हो, तो इनमें लिपटा प्लास्टिक और ग्लिटर आखिरकार कहां जाता है?
जवाब बहुत आसान है - कचरे के ढेर में।
मुझे समझ में आता है कि त्योहार मनाना हर किसी के दिल के करीब होता है, और क्यों न हो? हमलोगों के लिए यह प्यार, उत्साह और आनंद बांटने का छुट्टियां मनाने का मौका है। पर क्या हमने सोचा है कि इस प्यार को अपनी प्रकृति के लिए भी क्यों न बांटा जाए? यही सवाल मुझे सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम इस परंपरा में बदलाव लाकर इसे और भी सार्थक बना सकते हैं? क्या ये मुमकिन नहीं कि क्रिसमस की रौनक तो बरकरार रहे, लेकिन इसकी कीमत हमारी धरती को चुकानी न पड़े?😊
आपसे एक सवाल पूछने का मन कर रहा है – क्या हमने कभी सोचा है कि क्रिसमस का जश्न अब किस दिशा में बढ़ रहा है? कहने को यह एक धार्मिक और cultural त्योहार है, लेकिन अगर आप रात में पार्क स्ट्रीट, और कोलकाता की अन्य सड़कों पर एक नज़र डालें, तो तस्वीर कुछ और ही बयां करती है।
चलते हैं, पार्क स्ट्रीट की रौनक और फिर देखते हैं देर रात के "जश्न" । DJ की तेज़ धुनों पर डांस करते युवा, ग्लिटरी आउटफिट्स, शॉर्ट्स , इस ठंडी में भी हॉट पैंट पहनी और कभी-कभी शराब से मदमस्त चेहरों को देखकर लगता है कि क्रिसमस का मतलब अब सिर्फ मस्ती और..... रह गया है।
पार्क स्ट्रीट जैसे इलाकों में यह "उत्साह" कभी-कभी ऐसे रूप ले लेता है, जो समाज के मूल्यों पर सवाल खड़े कर देता है। युवा जोड़े पार्क में कुछ ज़्यादा ही "खुली हवा" महसूस करने लगते हैं। यह culture , जो मूल रूप से परिवार, प्यार और अपनेपन का प्रतीक है, वहां नीयत और नैतिकता कहीं पीछे छूट जाती है।
बाजार और उपभोक्तावाद इसे और बढ़ावा देते हैं। वे इस पीढ़ी को यह विश्वास दिला रहे हैं कि "जितना अधिक खरीदोगे और खर्च करोगे, उतना बेहतर जश्न मनेगा।" मुझे तो लगता है कि इस ओर बढ़ने के लिए बाजार धक्का दे रहा है। खाने-पीने, नाचने-नचाने, बहकने और बहकाने ….सबकी व्यवस्था बाजार ने कर रखी है।
युवा लड़कों और लड़कियों को आकर्षित करने के लिए ऐसी मार्केटिंग होती है, जिसमें इन्हें आज़ादी और मस्ती के नाम पर अंधाधुंध पैसा उड़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में न तो समाज बचता है और न पर्यावरण।
क्रिसमस की बात आते ही आपके दिमाग में सबसे पहले क्या आता है? शायद, एक सुंदर-सजाया हुआ क्रिसमस ट्री, झिलमिलाती लाइट्स और ढेर सारे गिफ्ट्स। ये सब इस त्योहार को ख़ास बनाते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन्हीं चीज़ों का सबसे बड़ा असर हमारे पर्यावरण पर पड़ता है?
आइए, इस पर अब थोड़ा गहराई से सोचते हैं।
क्रिसमस ट्री, जो त्योहार का सबसे बड़ा प्रतीक है, उसके पर्यावरणीय प्रभाव पर कभी सोचा है? अमेरिका में हर साल लगभग 3.3 करोड़ प्राकृतिक पाइन और फ़र के पेड़ केवल क्रिसमस के लिए उगाए और काटे जाते हैं। National Christmas Tree Association के मुताबिक, यह एक विशाल उद्योग है। जब ये पेड़ कटते हैं, तो वे न केवल वनों को नुकसान पहुंचाते हैं बल्कि परिवहन के दौरान उनका कार्बन फुटप्रिंट भी बढ़ता है।
अब बात करते हैं कृत्रिम पेड़ों की। क्या ये पर्यावरण के लिए बेहतर विकल्प हैं? The Carbon Trust की रिपोर्ट कहती है कि एक कृत्रिम क्रिसमस ट्री, अपने जीवनकाल में, लगभग 40 किलो कार्बन डाइऑक्साइड उत्पन्न करता है। ये प्लास्टिक (PVC) और अन्य पेट्रोलियम उत्पादों से बने होते हैं और गैर-बायोडिग्रेडेबल होने के कारण, लैंडफिल्स में सैकड़ों वर्षों तक सड़ते नहीं हैं।
तो सवाल यह उठता है – प्राकृतिक पेड़ लें या कृत्रिम?
जवाब स्पष्ट है, दोनों के अपने पर्यावरणीय नुकसान हैं।
क्रिसमस की रातें झिलमिलाती लाइट्स के बिना अधूरी लगती हैं। लेकिन क्या आपने कभी इनकी चमक के पीछे के "अंधेरे सच" पर ध्यान दिया? Enerdata's Global Energy Statistical Yearbook (2023) के अनुसार, अमेरिका में क्रिसमस लाइट्स की बिजली खपत इतनी अधिक होती है कि यह एल साल्वाडोर जैसे छोटे देश की वार्षिक बिजली खपत के बराबर है।
इन लाइट्स के लिए इस्तेमाल की जाने वाली बिजली का बड़ा हिस्सा गैर-नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों, खासकर कोयले, से आता है। इसका नतीजा ग्लोबल वॉर्मिंग को बढ़ावा देना और कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि के रूप में सामने आता है। इसके अलावा, प्रकाश प्रदूषण भी एक बड़ा मुद्दा है। यह न केवल चिड़ियों और अन्य जीवों का प्राकृतिक चक्र बिगाड़ता है, बल्कि रात की पारिस्थितिकी को भी प्रभावित करता है। बिजली के इन lights की जगह दीपक या कुछ हद तक मोमबत्ती …एक सही रास्ते की ओर हमे ले जा सकती है।
क्या आपने महसूस किया है कि पर्व-त्योहार, क्रिसमस अब केवल रिलिजन और परिवार के साथ जुड़े रहने का पर्व नहीं रहा? यह आज उपभोक्तावाद और ख़रीदारी का पर्व बन चुका है। The Guardian के अनुसार, ब्रिटेन में 2022 के दौरान क्रिसमस के समय 4 लाख टन गिफ्ट रैपिंग वेस्ट उत्पन्न हुआ। चमचमाता गिफ्ट रैपिंग पेपर और प्लास्टिक की सजावट, जो खास मौकों को यादगार बनाने के लिए खरीदी जाती है, इस्तेमाल के बाद ज़्यादातर रिसाइकल नहीं होती।
"ब्लैक फ्राइडे" और "क्रिसमस सेल" जैसे ईवेंट्स, लोगों को अनावश्यक चीजें खरीदने के लिए प्रेरित करते हैं। नतीजतन, पर्यावरणीय संसाधनों पर दबाव बढ़ता है।
क्रिसमस के दौरान कचरे और कार्बन फुटप्रिंट की समस्या सबसे बड़ी होती है। अमेरिका में हर साल क्रिसमस के दौरान कचरे का उत्पादन औसतन 25% बढ़ जाता है। Stanford University के एक अध्ययन के अनुसार, यह हर साल लगभग 10 लाख टन अतिरिक्त कचरे के बराबर है।
आप जानकर चौंकेंगे कि इस कचरे में सबसे बड़ा हिस्सा गिफ्ट रैपिंग पेपर का है। The Carbon Trust की रिपोर्ट के अनुसार, केवल 2022 में 2.3 करोड़ गिफ्ट रैपिंग रोल्स का उपयोग किया गया, जिनमें से अधिकांश रीसायकल नहीं हो पाए। इसके अलावा, क्रिसमस कार्ड, प्लास्टिक की सजावट, और डिस्पोजेबल टेबलवेयर लैंडफिल्स भरने का काम करते हैं।
कार्बन फुटप्रिंट पर गौर करें, तो Carbon Trust के अनुसार, क्रिसमस के दौरान एक औसत परिवार का पर्यावरणीय प्रभाव लगभग 280 किलो CO₂ उत्सर्जन के बराबर होता है। अगर हम ऑनलाइन गिफ्ट्स की ख़रीदारी करते हैं, तो इनके निर्माण और ट्रांसपोर्ट से उत्सर्जन और भी बढ़ जाता है।
इन सब तथ्यों से थोड़ी चिंता होती है। हमें क्रिसमस को जश्न के साथ-साथ पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार रहकर मानना चाहिए। सोचिये कि कैसे हम अपने जश्न में ऐसे छोटे-छोटे बदलाव कर सकते हैं जो धरती के लिए बड़े बदलाव लाएं? सोचिए, एक हरित और टिकाऊ क्रिसमस का हिस्सा बनकर हम भी इस त्योहार की असली खुशी मना सकते हैं। 😊

सबसे पहले, आइए क्रिसमस ट्री से शुरुआत करें। इस बार क्यों न हम प्राकृतिक पेड़ों को काटने की बजाय स्थायी विकल्पों की ओर ध्यान दें? पुन: उपयोग किए जा सकने वाले और पर्यावरण-अनुकूल सामग्रियों से बने ट्री को अपनाएं। अगर आपको असली पेड़ों का आकर्षण अधिक पसंद है, तो छोटे गमले में उगाए गए पेड़ लें। उत्सव के बाद इन्हें वापस धरती में लगा दें। यह न केवल हरियाली को बढ़ावा देगा, बल्कि इस परंपरा को प्रकृति के अनुकूल भी बनाएगा।
अब बात करें सजावट की। क्या आप जानते हैं कि LED लाइट्स और सोलर लाइट्स आपके डेकोरेशन को सुंदर और टिकाऊ बनाने में कितनी मददगार हो सकती हैं? इनमें बिजली की खपत कम होती है और पर्यावरण पर बोझ भी। अगर आप अनावश्यक बिजली खर्च से बचना चाहते हैं, तो लाइट्स पर टाइमर सेट करें। इससे आपकी सजावट किफायती होने के साथ-साथ ज़िम्मेदार भी बनेगी।
उपहारों की पैकिंग के मामले में थोड़ा सा रचनात्मक होने की कोशिश करें। प्लास्टिक और कागज के रैपिंग पेपर से बचें और कपड़े के पैकिंग का विकल्प चुनें, जिसे दोबारा इस्तेमाल किया जा सके। पुरानी डेकोरेशन सामग्रियों का नया उपयोग करें। थोड़ा रंग, थोड़ा बदलाव, और वो बिल्कुल नई लगेंगी। ऐसे प्रयास आपके क्रिसमस को खास भी बनाएंगे और पर्यावरण को सुरक्षित भी।
और हाँ, स्थानीय उत्पादों का चयन करना न भूलें। अपने गिफ्ट के रूप में हाथ से बने उत्पाद चुनें। यह न केवल स्थानीय कारीगरों को रोजगार देगा, बल्कि इससे कार्बन उत्सर्जन भी कम होगा। पौधे, बीज, या पुस्तकें उपहार देने के बेहतरीन और पर्यावरण-अनुकूल विकल्प हैं।
सोचिए, अगर हम सब थोड़ा-थोड़ा योगदान दें, तो हमारा यह कदम पृथ्वी के लिए कितना बड़ा तोहफा होगा। तो क्यों न इस बार क्रिसमस केवल हमारा उत्सव न होकर धरती का भी उत्सव बने? 🌱🎄
त्योहारों का मतलब केवल रोशनी, मौज-मस्ती और उत्सव नहीं है। ये अवसर हैं, जब हम जीवन और प्रकृति के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को पहचान सकते हैं। क्रिसमस, जो प्रेम और उदारता का प्रतीक है, क्या प्रकृति के लिए कुछ अच्छा करने का अवसर नहीं बन सकता?
आइए इस साल का क्रिसमस एक नए संकल्प के साथ मनाएं—"धरती को हरित और खुशहाल बनाने का।" यह संकल्प न केवल हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए तोहफा होगा, बल्कि असली त्योहारी खुशी भी तभी होगी, जब हम अपने पर्यावरण के साथ सामंजस्य बिठाकर जिएं।
तो इस क्रिसमस, जगमगाहट और खुशियों के साथ धरती को भी हरियाली का उपहार दें। क्योंकि "हरियाली भरा क्रिसमस, हमारी पृथ्वी के लिए सच्चा वरदान है।" 🌍🎄✨
यहाँ तक पढ़ने के लिए धन्यवाद ! आप भी अपने स्तर पर २५ दिसंबर को ही क्रिसमस के पालन का कारन ढूंढिए या फिर ईश्वरपुत्र यीशु मसीह के जन्मदिन का कोई तथ्य मिल जाये तो मुझे भी बताये। विज्ञान के युग में सत्यान्वेषण चलते रहना चाहिए।
इति शुभं
विकास
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