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चौराहे पर चुम्मा क्रांति  : कीस आफ लव

2024-12-24  विप्लव विकास

 

kiss of love in Kollkata

image source: Times Of India


 चौराहे पर चुम्मा क्रांति: कीस ऑफ लव 

5 नवंबर 2014 

प्रिय पाठक, 

आज कुछ गहरी और दिलचस्प बातें करने का मन है। अपने वामपंथी मित्रों और उनकी विचित्र क्रांतियों पर बात न की जाए, तो दिन अधूरा सा लगता है। आज की चर्चा का केंद्र है: "कीस ऑफ लव"। जी हां, वही जिसे देखकर मेरे दिमाग में तूफान तो उठा ही, साथ ही कुछ सवाल भी खड़े हो गए। 

तो हुआ यूं कि हम जादवपुर के मशहूर इंडियन कॉफी हाउस में अपने कुछ दोस्तों के साथ अड्डाबाजी कर रहे थे। आपको तो पता ही है कि यह जगह केवल कॉफी पीने के लिए नहीं, बल्कि जीवन की अनगिनत समस्याओं और बेफिजूल के मुद्दों पर बहस करने के लिए भी मशहूर है। इंटरनेशनल इकॉनमी से लेकर दुष्यंत कुमार की पंक्तियों तक, यहां सब कुछ डिस्कस होता है। 

अचानक, मेरे एक मित्र का फोन आया। वह आवाज में थोड़ा उत्तेजित और उत्सुक था। बोला, "84बी के पास यूनिवर्सिटी गेट पर कोई आंदोलन हो रहा है। मीडिया भी आई हुई है। तू भी आ।" 

आंदोलन का नाम सुनते ही मैं और मेरे कुछ साथी मौके पर पहुंच गए। वहां जो नजारा देखा, उसने मेरी सोचने-समझने की क्षमता को हिला कर रख दिया। 

चौराहे पर करीब 40-50 लड़के-लड़कियां आपस में एक-दूसरे को पकड़े हुए थे। वे गाल पर नहीं, सीधे होंठों पर चुम्मा-चाटी कर रहे थे। और कोई हिचकिचाहट नहीं, मानो यह कोई सामान्य बात हो। 

मैंने बगल खड़े एक शख्स से पूछा, "भाई साहब, यह क्या हो रहा है?" वह भी उतना ही भौचक्का था जितना मैं। 

फिर मेरी नजर यूनिवर्सिटी की बाउंड्री से लगे एक बड़े से प्लेकार्ड पर पड़ी। वहां बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था: 

“KISS OF LOVE CAMPAIGN!” 

उस प्लेकार्ड को देखते ही मेरे मुंह से अनायास निकल पड़ा, “ओ तेरी! यह कौन सी नई क्रांति शुरू कर दी हमारे वामपंथी साथियों ने?” 

Kiss of Love' protest spreads to Kolkata - Viplav Vikas

Image source: reddif.com

चुम्मा क्रांति की कहानी 

आप मानेंगे या नहीं, लेकिन इस तरह की क्रांति मैंने अपने जीवन में पहली बार देखी थी। वहां कुछ लड़के-लड़कियां तो सिर्फ इस बात से परेशान थे कि उन्हें इस क्रांति का हिस्सा क्यों नहीं बनाया गया। "आखिर कमरेट होने का सर्टिफिकेट भी तो चाहिए," एक ने कहा। 

मीडिया वाले पूरी मेहनत में जुटे थे। कैमरे रोल हो रहे थे, लाइव रिपोर्टिंग चल रही थी। आंदोलन का पूरा माहौल ऐसा था जैसे कोई बॉलीवुड फिल्म का रोमांटिक सीन शूट हो रहा हो। एक घंटे की चुम्मा क्रांति और उसके बाद सब अपने-अपने घर चले गए। 

लेकिन मेरे दिल और दिमाग में सवालों की झड़ी लग गई। मैंने इसके बारे में इंटरनेट पर खोजना शुरू किया।  और एक नई कहानी मेरे सामने थी।  

 

तो आइए, इस अजीब सी क्रांति की जड़ों तक चलते हैं। "कीस ऑफ लव" आंदोलन की शुरुआत 2014 में केरल के कोझीकोड में हुई थी। हुआ यूं कि कुछ महीनों पहले वहां के एक कैफे में एक युवा जोड़े को सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे को चूमते हुए देखा गया। यह घटना इतनी सामान्य हो सकती थी, लेकिन कुछ स्थानीय लोगों और संगठनों ने इसे "भारतीय संस्कृति के खिलाफ" करार देते हुए उस कैफे को तोड़फोड़ डाला। 

इस घटना ने केरल के युवाओं में गुस्से की आग भड़का दी। इसके बाद एक ग्रुप सामने आया, जिसने तय किया कि वे अपने तरीके से विरोध दर्ज कराएंगे। और इस तरह "कीस ऑफ लव" आंदोलन का जन्म हुआ। आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था  "मोरल पुलिसिंग" के खिलाफ आवाज उठाना। 

अब आपको लगेगा कि यह विरोध होगा पोस्टरों, भाषणों या नारों के साथ। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। "कीस ऑफ लव" के आयोजकों ने अनोखा तरीका अपनाया। 

वे कोझीकोड के समुद्र तट पर इकट्ठा हुए और एक-दूसरे को खुलेआम गले लगाया और चूमा। यह आंदोलन देखते ही देखते वायरल हो गया। सोशल मीडिया पर इसकी तस्वीरें और वीडियो छा गए। वहां की मीडिया ने इसे अपने प्रमुख कार्यक्रमों में जगह दी। 

केरल के बाद, यह आंदोलन दिल्ली, कोलकाता और मुंबई जैसे महानगरों तक फैल गया। हर जगह यह विरोध "moral policing" के खिलाफ एक मंच बन गया। 

लेकिन हर जगह इसे समर्थन नहीं मिला। कई बार विरोध के दौरान आयोजकों पर हमला भी हुआ। देश के कई हिस्सों में इसे "भारतीय संस्कृति" के खिलाफ बता कर बैन कर दिया गया। 

 

ये कैसा आंदोलन? 

  1. क्रांति या ड्रामा? ये लड़के-लड़कियां आखिर किस उद्देश्य से यह सब कर रहे थे? 
  2. ऐसे आयोजनों को फंड कौन करता है? मीडिया और यूनिवर्सिटी प्रशासन को कैसे मैनेज किया जाता है? 
  3. क्या यह आंदोलन सचमुच समाज को बदलने के लिए था, या यह वामपंथी एजेंडा था, जो केवल समाज में गंदगी फैलाने के लिए था? 
  4. यह तो मनोवैज्ञानिक शोध का विषय होना चाहिए कि सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे को इस तरह चुम्मा लेना जैसे कि वे काम के चरम स्तर पर हो इसका मनोविज्ञान क्या कहता है? क्या यह किसी गहरी साजिश का हिस्सा है? या आंदोलन के बहाने अपनी यौन कुंठा या पिपासा को मिटने का उपक्रम?    

सोचिए, एक शिक्षण संस्थान के दरवाजे पर इस तरह का तमाशा हो रहा है। यह एक नितांत व्यक्तिगत विषय है, लेकिन जब इसे सार्वजनिक मंच पर इस तरह पेश किया जाए, तो सवाल उठता है कि इसका असली उद्देश्य क्या है? 

किसी भी शिक्षण संस्थान का उद्देश्य शिक्षा प्रदान करना और सामाजिक मूल्यों को बढ़ावा देना होता है। लेकिन वामपंथी विचारधारा ने इसे अपनी गंदी राजनीति और सेक्सुअल एजेंडा फैलाने का अड्डा बना दिया है। 

आपको याद है न The Kashmir Files का वह दृश्य “Call me Radhika”? यहां भी वही कहानी दोहराई जा रही है। शिक्षण संस्थानों को मानसिक और सामाजिक गंदगी का अड्डा बनाया जा रहा है। 

  • युवाओं के बीच इस तरह की गतिविधियों को बढ़ावा देकर वामपंथी कौन सा समाज बनाना चाहते हैं? 
  • क्या यह सब बाहरी ताकतों का खेल है? 
  • शिक्षण संस्थानों में इस तरह के ड्रामों को बढ़ावा देना क्या नई पीढ़ी को भटकाने की साजिश है? 

 

चौराहे पर खड़ा यह तमाशा केवल हास्यास्पद नहीं, बल्कि चिंताजनक है। यह सिर्फ शिक्षण संस्थानों तक सीमित नहीं रहेगा। अगर समय रहते नहीं संभला गया, तो यह गंदगी समाज के हर कोने में फैल जाएगी। 

तो बताइए, क्या आप ऐसी चुम्मा क्रांति का हिस्सा बनना चाहेंगे, या हमारे युवाओं को सही दिशा में बढ़ाने के लिए कुछ ठोस कदम उठाएंगे? "कीस ऑफ लव" आंदोलन ने न केवल समाज को विभाजित किया, बल्कि इसे गहराई से सोचने पर भी मजबूर किया। आखिर किस सीमा तक व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सार्वजनिक मर्यादा को संतुलित किया जा सकता है? 

अब यह आपकी सोच पर निर्भर करता है कि आप इसे एक क्रांति मानते हैं या केवल एक दिखावा। 

आप क्या सोचते हैं? क्या "कीस ऑफ लव" जैसी क्रांतियां वास्तव में जरूरी हैं, या समाज में अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान दिया जाना चाहिए? 

 

 

 

 


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