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चंगाई सभा वंचितों के ईसाईकरण का षड्यंत्र है

2025-03-02  विप्लव विकास

जनवरी 2023 में बागेश्वर धाम के आचार्य धीरेन्द्र शास्त्री की श्रीराम चरित्र चर्चा पर विवाद छिड़ा, जब महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति ने उन पर अंधविश्वास फैलाने का आरोप लगाया। इसी दौरान, एक वामपंथी कवि ने फेसबुक पर उपवास को अंधविश्वास बताकर व्यंग्य किया। जब हमने उन्हें ऑटोफैगी की वैज्ञानिक सत्यता और नोबेल पुरस्कार विजेता योशिनोरी ओसुमी के शोध से अवगत कराया, तो वे बहस से बचते हुए गायब हो गए। उपवास के माध्यम से ऑटोफैगी का अभ्यास हिन्दू समाज शताब्दियों से करता आ रहा है। पर विडंबना यह है कि वैज्ञानिक रूप से सिद्ध तथ्य भी वामपंथी नजरिए से "अंधविश्वास" बन जाते हैं, और हम जानकारी के अभाव में उनको प्रगतिशील मानकर ‘जी सर’ की मुद्रा में आ जाते हैं।  

 

पोप फ्रांसिस लंबे समय से ह्विल चेयर पर हैं और पिछले कुछ सप्ताहों से गंभीर रूप से बिमार है। 23 फरवरी को विधायक राजा भैया ने व्यंग्य किया कि भारतीय पादरी, जो चंगाई सभाओं में चमत्कारी इलाज का दावा करते हैं, वेटिकन जाकर पोप को ठीक क्यों नहीं कर रहे? यह टिप्पणी धर्मांतरण और चंगाई सभाओं की विश्वसनीयता पर नई बहस छेड़ती है। अगर ये सच में प्रभावी हैं, तो क्या वे पोप को ठीक कर सकती हैं? क्या आपने किसी वामपंथी को चंगाई सभाओं में होने वाले नाटक पर कुछ बोलते सुना है? क्या कभी अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति जैसी किसी संस्था ने आवाज उठाई है? नहीं, क्योंकि बात वैज्ञानिकता या प्रगतिशीलता की नहीं वामपंथी एजेंडे की है।   

 

भारत में मतांतरण का मुद्दा लंबे समय से विवाद का विषय रहा है। "चंगाई सभा" के माध्यम से गरीब और वंचित समुदायों को लक्षित कर उनके ईसाईकरण के प्रयासों ने हाल के वर्षों में गंभीर चिंताएँ उत्पन्न की हैं। "चंगाई सभा" यानि "चमत्कारी चिकित्सा सभा"। इन सभाओं में प्रार्थना और चमत्कारीक उपचार के माध्यम से शारीरिक और मानसिक बीमारियों से मुक्ति दिलाने का दावा किया जाता है। परन्तु देखा गया है कि इन सभाओं का उपयोग गरीबो के ईसाईकरण के लिए किया जा रहा है। ईसाईकरण के लिए चंगाई सभाएँ एक सोची-समझी रणनीति के तहत चलाई जाती हैं, जहाँ आर्थिक रूप से कमजोर और स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित समुदायों को निशाना बनाया जाता है। इन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर प्रार्थना सभाएँ आयोजित की जाती हैं, जहाँ चमत्कारिक इलाज और बीमारियों से मुक्ति के दावे किए जाते हैं। विश्वास बढ़ाने के लिए बाइबिल और अन्य ईसाई साहित्य का वितरण किया जाता है, जिससे लोग इसकी ओर आकर्षित हों। धीरे-धीरे, नियमित प्रार्थना सभाओं और व्यक्तिगत संपर्क के माध्यम से उन्हें ईसाई रिलिजन अपनाने के लिए प्रेरित या बाध्य किया जाता है। इस प्रक्रिया में आशा, भय, लोभ और सामाजिक सुरक्षा के आश्वासन का उपयोग कर मतांतरण को अंजाम दिया जाता है।  

 

चंगाई सभाओं के माध्यम से हो रहे मतांतरण के प्रयासों ने कई समुदायों में आक्रोश पैदा किया है। बरेली (अगस्त 2024) में, बहेड़ी की गौटिया बस्ती में एक सभा में 40-50 हिन्दुओं को ईसाई रिलिजन में परिवर्तित करने का आरोप लगा, जिसका बजरंग दल और विहिप ने विरोध किया और पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ (नवंबर 2024) में, एक महीने में सौ से अधिक परिवारों के मतांतरण का दावा किया गया, जहाँ आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को स्वास्थ्य लाभ और आर्थिक सहायता का लालच दिया गया। छत्तीसगढ़ के ही बलरामपुर (जनवरी 2025) में, वाड्रफनगर में एक चंगाई सभा के दौरान मतांतरण की कोशिश पर पुलिस ने कार्रवाई कर तीन लोगों को हिरासत में लिया और रिलिजियस सामग्री जब्त की। ये घटनाएँ दर्शाती हैं कि चंगाई सभाएँ किस तरह सुनियोजित रूप से धर्मांतरण के लिए इस्तेमाल की जा रही हैं।  

 

 

भारत में ईसाई मिशनरियों की गतिविधियाँ ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के पहले से ही सक्रिय रही हैं। मतांतरण अभियान के प्रारंभिक कड़ियों में जेवियर्स का नाम उल्लेखनीय है जिनके नाम पर 1869 में जेवियर्स कॉलेज की स्थापना हुई। जेवियर्स गोवा में पुर्तगाली आक्रांताओं के शासन में हिंदुओं के जबरन मतांतरण के पुरोधा थे।  इसी कड़ी में सर्वपरिचित नाम मदर टेरेसा का है। एग्नेस गोंझा बोयाजिजू यानि मदर टेरेसा को दुनिया भर में सेवा और मानवता की प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया, लेकिन उनके ईसाईकरण अभियान की खूब चर्चा होती है। उनकी संस्था मिशनरीज ऑफ चैरिटी सेवा की आड़ में मतांतरण को बढ़ावा देती रही है। कई रिपोर्टों और पूर्व सदस्यों के बयानों के अनुसार, गरीब और बीमार हिंदुओं को ईसाई रिलिजन अपनाने के लिए प्रेरित या कहें बाध्य किया जाता था, खासकर मरने की कगार पर पहुँचे लोगों को गुप्त रूप से बपतिस्मा दिया जाता था। उनके मिशनरियों में मिलने वाली चिकित्सा सुविधाएँ भी सवालों के घेरे में रहीं, जहाँ आधुनिक इलाज के बजाय प्रार्थना और ईसाई अनुष्ठानों पर जोर दिया जाता था। उनके अनन्य सहयोगी रहे अरूप चटर्जी की ‘मदर टेरेसा: द अनटोल्ड स्टोरी’ पुस्तक पढनी चाहिए।  

 

वेटिकन सिटी में मदर टेरेसा को 2016 में पोप फ्रांसिस द्वारा संत की उपाधि दी गई, जिसके लिए दो चमत्कारों को आधार बनाया गया। पहला चमत्कार 2002 में मान्यता प्राप्त हुआ, जहाँ पश्चिम बंग की मोनिका बेसरा नामक महिला ने दावा किया कि मदर टेरेसा की फोटो से प्रार्थना से उसका ट्यूमर ठीक हो गया। दूसरा चमत्कार 2015 में ब्राजील के एक व्यक्ति के ब्रेन इंफेक्शन से ठीक होने का दावा था। वेटिकन ने इन चमत्कारों को सत्य मानते हुए मदर टेरेसा को 4 सितंबर 2016 को संत घोषित कर दिया, जबकि चिकित्सा विशेषज्ञों और आलोचकों ने इस पर सवाल उठाए। चंगाई सभा जेवियर्स से लेकर मदर टेरेसा तक की ईसाईकरण अभियान के षड्यंत्र का ही नया रूप है जो गरीबों, और किसी सुविधा से वंचित लोगों को चिन्हित कर मतांतरण के जाल में फंसाती है। इस जाल से अपने समाजबंधुओं को बचाने का दायित्व केवल सरकार का नहीं है। सरकार जिस दल का हो उसके एजेंडे अलग-अलग हो सकते हैं। पर हम अपने वंचित बंधुओं के साथ खड़े हो कर इस ईसाई मतांतरण मशीन को निष्क्रिय कर सकते हैं। ध्यान रहे समरसता और लोक प्रबोधन से ही इस षड्यंत्र से हम ईसाईकरण अभियान को रोक कर अपने देश की आंतरिक सुरक्षा और सामाजिक सौहार्द को सुरक्षित रख सकते हैं।   

 

 

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