थ्री इडियट्स फिल्म में परीक्षा के समय तीनो प्रमुख चरित्र समय पर अपनी कॉपी जमा नहीं कर पाते और शिक्षक जमा लेने से मना करते हैं तो प्रमुख चरित्र उनसे पूछते है “सर, आप जानते है हमलोग कौन है? हमारा नाम क्या है ? हमारा रॉल नंबर क्या है?” शिक्षक के “नहीं” बोलने पर वो अपने और दोनों साथियों की कॉपी लेता है और उन सभी कापियों जो समय पर जमा कर दी गई थी उसके साथ मिलाकर भाग जाता है। अब शिक्षक निश्चित नहीं कर पाते की कौन सी कॉपी समय पर जमा होने वाली है और कौन सी विलम्ब से ! बस यही मॉडल पश्चिम बंग में शिक्षक घोटाले में दीखता हिअ और यही मॉडल ममता बनर्जी बांग्लादेशियों को बचने में लागू करना चाहती है।
16 जुलाई 2025 को कोलकाता की सड़कों पर भारी बारिश के बीच पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जिस 'बांग्ला अस्मिता' के नाम पर रैली निकाली, वह दरअसल बंगाल की संस्कृति और अस्मिता को बचाने का नहीं, बल्कि उसे खंडित और कमजोर करने का एक सुनियोजित राजनीतिक प्रयास था। यह रैली एक ऐसे समय में आयोजित की गई जब देश के अलग-अलग हिस्सों से बांग्ला बोलने वाले लोगों के नाम पर अवैध बांग्लादेशी नागरिकों की पहचान, हिरासत और देश से निष्कासन की प्रक्रिया चल रही है। लेकिन ममता बनर्जी ने इसे ‘बंगालियों के खिलाफ षड्यंत्र’ करार देकर पूरे देश में बंगाली समुदाय को भावनात्मक जाल में फंसाने की कोशिश की है।
ममता बनर्जी का यह दावा कि “अगर बांग्ला बोलना अपराध है, तो मुझे गिरफ्तार करो”, केवल एक राजनीतिक नारा नहीं, बल्कि राष्ट्रविरोधी तत्वों को ढाल देने की घोषणा है। बंगाल की मुख्यमंत्री होने के नाते, उन्हें इस बात का बखूबी ज्ञान है कि भारत में केवल बांग्ला बोलना किसी व्यक्ति को भारतीय नागरिक सिद्ध नहीं करता। बांग्लादेश से अवैध रूप से घुसपैठ कर आए लाखों लोग भी बांग्ला बोलते हैं। क्या ममता बनर्जी अब इन सभी को 'बांग्ला अस्मिता' का हिस्सा मानकर भारत में बसाने का ठेका ले चुकी हैं?
विगत वर्षों में बंगाल में जिस प्रकार से रोहिंग्याओं और बांग्लादेशी मुसलमानों की संख्या और प्रभाव बढ़ा है, वह किसी से छिपा नहीं है। ममता सरकार ने कभी भी इनके घुसपैठ को गंभीरता से नहीं लिया, बल्कि इन्हें राशन कार्ड, आधार कार्ड, वोटर आईडी और यहां तक कि सरकारी योजनाओं का लाभ भी उपलब्ध कराया। अब जब देश के अन्य हिस्सों में इनकी पहचान की जा रही है, तो ममता बनर्जी इसे 'बंगाली पहचान पर हमला' बताकर उनकी ढाल बन रही हैं। क्या यह उसी प्रकार नहीं है जैसे शिक्षक भर्ती घोटाले में घूस लेकर नौकरी पाने वालों को और कड़ी मेहनत से परीक्षा पास करने वालों को एक ही तराजू में तौला गया? ममता सरकार ने न तो शिक्षक घोटाले में यह स्पष्ट किया कि किसकी नियुक्ति वैध है और किसकी अवैध, और अब उसी ढर्रे पर बांग्ला बोलने वाले हर व्यक्ति को भारतीय मानने की जिद पकड़ ली है।
यह रैली दरअसल बंगाल की जनता की आंखों में धूल झोंकने का प्रयास है। जहां एक ओर बेरोजगारी चरम पर है, कानून-व्यवस्था रसातल में है, बलात्कार और महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ते जा रहे हैं, वहां ममता बनर्जी इन मुद्दों से ध्यान हटाकर 'बिरादरवाद' की राजनीति कर रही हैं। यह रैली न तो बंगालियों के हित के लिए थी, न ही उनकी अस्मिता की रक्षा के लिए। यह एक साफ-साफ ‘बांग्लादेशी और रोहिंग्या बचाओ आंदोलन’ था, जिसकी आड़ में ममता बनर्जी 2026 के विधानसभा चुनावों के लिए अपना वोट बैंक सुरक्षित करना चाहती हैं। ममता जानती हैं कि मुसलमान वोटरों का एक बड़ा हिस्सा बांग्लादेशी मूल का है, जिन्हें अगर भारतीय नागरिकता से बाहर कर दिया गया तो उनकी राजनीतिक जमीन दरक जाएगी। इसलिए वह इस लड़ाई को धार्मिक और भाषाई रंग देकर, मुस्लिम वोटरों की भावनाएं भड़काना चाहती हैं और हिंदू बंगालियों को 'बांग्ला अस्मिता' के नाम पर भावनात्मक रूप से जोड़ने की चाल चल रही हैं। लेकिन बंगाल के जागरूक नागरिक अब इस साजिश को समझ चुके हैं।
यह जरूरी है कि देशभर के भारतीय बंगाली, चाहे वे दिल्ली में हों, महाराष्ट्र में, असम में या छत्तीसगढ़ में, इस घातक राजनीति के खिलाफ खुलकर बोलें। बांग्ला बोलना गर्व की बात है, लेकिन केवल भाषा के आधार पर किसी अवैध नागरिक को भारतीय बनाना, भारत और बंगाल दोनों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है। ममता बनर्जी जिस प्रकार बांग्ला अस्मिता का दुरुपयोग कर रही हैं, उससे देश के हर हिस्से में बसे सच्चे भारतीय बंगालियों की पहचान खतरे में पड़ सकती है। उनके सम्मान को ठेस पहुंचेगी। भारत एक राष्ट्र है, जहां भाषाएं विविध हैं, लेकिन नागरिकता का निर्धारण केवल भाषा के आधार पर नहीं होता। यदि आज हम बांग्ला बोलने वाले हर व्यक्ति को भारतीय मानने लगें, तो कल उर्दू, नेपाली, सिंधी और तमिल बोलने वालों के नाम पर भी विदेशी नागरिकों को भारतीयता का प्रमाणपत्र देना पड़ेगा। क्या ममता बनर्जी देश को इस अराजकता की ओर धकेलना चाहती हैं?
सच तो यह है कि ममता बनर्जी की यह रैली उनके शासन की विफलताओं, बढ़ते भ्रष्टाचार, शिक्षक घोटाले, महिला सुरक्षा में असफलता और जनविरोधी नीतियों से ध्यान हटाने का एक माध्यम थी। बंगाल को असमंजस और भ्रम में डालने की एक और कोशिश थी, जिसे पहचानना अब जनता की जिम्मेदारी है। अब समय आ गया है जब देशभर के भारतीय बंगाली, विशेषकर युवा, ममता सरकार की इस वोट-बैंक आधारित विभाजनकारी राजनीति का खुलकर विरोध करें और यह स्पष्ट संदेश दें कि बंगाल की अस्मिता का अर्थ रवींद्रनाथ, नेताजी, बंकिम और विवेकानंद की परंपरा है , न कि घुसपैठ, भ्रष्टाचार और बिरादरवाद की राजनीति। बंगाल का भविष्य उस बंगाली अस्मिता में है जो देशभक्त है, प्रगतिशील है और राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानती है , न कि उस में जो ममता बनर्जी की राजनीति का उपकरण बन जाए।