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भारत में हवाई यातायात कैसे नियंत्रित होता है? पूरी कहानी यहां है

2025-02-11  विप्लव विकास

प्रिय पाठक!

क्या कभी सोचा है कि ऊपर आसमान में जहाज़ों की दुनिया कैसे चलती है? चलिए ये सब जानते है…. 

जब भी हम प्लेन में बैठते हैं, खिड़की से बाहर देखते हैं और बादलों के बीच उड़ते हुए खुद को किसी फिल्म के सीन में पाते हैं, तो एक सवाल कभी-कभी मन में आता है—आखिर इतनी सारी फ्लाइट्स आसमान में कैसे मैनेज होती हैं? जब हजारों किलोमीटर दूर तक फैले खुले आसमान में नज़रें जाती हैं, तो यह सोचना भी मुश्किल हो जाता है कि यहां भी एक सिस्टम काम करता होगा। मुझे तो पहले लगता था कि पूरा आसमान तो खाली होता है । कोई दुकान नहीं, कोई मकान नहीं न ही कोई पार्क या ट्रैफिक सिग्नल होता है। जैसे मन करता होगा पायलट वैसे ही अपनी-अपनी प्लेन उड़ाते होंगे। आपको भी कभी ऐसा लगा है? संभवतः !  लेकिन सच मानिए, यह पूरा सिस्टम एक सुपर ऑर्गनाइज़्ड नेटवर्क से कंट्रोल होता है, ताकि हर फ्लाइट सही रास्ते पर रहे, सही वक्त पर पहुंचे और दूसरी फ्लाइट से न टकराए।

अब ज़रा सोचिए, दिल्ली से कोई फ्लाइट उड़ती है और मुंबई, कोलकाता या चेन्नई की तरफ बढ़ती है। दूसरी तरफ, दुनिया के कोने-कोने से हजारों इंटरनेशनल फ्लाइट्स भी भारत के ऊपर से होकर गुजर रही होती हैं। अगर इनका सही तरीके से मार्गदर्शन न किया जाए, तो एक सेकंड में ही हवाई यातायात में अफरा-तफरी मच सकती है! ऐसे में ज़रूरी हो जाता है कि कोई पूरे सिस्टम पर नज़र रखे, हर फ्लाइट को रास्ता दिखाए और सुनिश्चित करे कि हर चीज़ एकदम सटीक तरीके से चले।

तो फिर कौन है जो इन उड़ानों को मैनेज करता है? कौन तय करता है कि कौन-सी फ्लाइट कहां से निकलेगी, किस हवाई मार्ग पर चलेगी और किस हवाई अड्डे पर उतरेगी? ये सब एक सुपर इंटेलिजेंट सिस्टम की मदद से तय किया जाता है, जिसे एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) कहा जाता है।

तो, ये FIR क्या है?

जी हां, आपने सही पढ़ा FIR! वो पुलिस वाला नहीं जी। वैसे मैंने भी जब पहली बार इस FIR के बारे में पढ़ना सुरु किया था तो प्रथम दृष्टया तो यही लगा कि यार यहाँ भी चोर-पुलिस-सिपाही-मंत्री वाली कहानी है क्या? पर धीरे-धीरे समझ में आया कि नहीं भाई ये तो कुछ नया ही मामला है। तो अब जब हम एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) की बात कर ही रहे हैं, तो ज़रूरी हो जाता है कि FIR यानी Flight Information Region के बारे में भी समझें, क्योंकि यही वह बुनियादी ढांचा है, जो पूरे हवाई यातायात को नियंत्रित करता है।

FIR को अगर आसान भाषा में समझें, तो यह विशाल भारत के विस्तृत आसमान को चार बड़े हिस्सों में बांटने का तरीका है। चूंकि भारत का हवाई क्षेत्र बहुत विशाल है और यहां से गुजरने वाली फ्लाइट्स की संख्या लाखों में है, इसलिए इसे बेहतर तरीके से संभालने के लिए चार बड़े जोन या रीजन बनाए गए हैं। ये रीजन एक तरह से एयर ट्रैफिक कंट्रोल के ज़िम्मेदार इलाके हैं, जिनके अलग-अलग कंट्रोल सेंटर होते हैं।

अब सोचिए, अगर पूरे देश का हवाई यातायात सिर्फ एक जगह से कंट्रोल किया जाता, तो कितना बड़ा झंझट हो जाता! जो संभालता या जो टीम संभालती वो तो पागल हो जाती।  भाई लाखों नेशनल और इंटरनेशनल फ्लाइट्स रोज उड़ान भरतीं हैं, उतरती है।  आखिर ATC वाले भी तो आदमी ही हैं।  सुनिए, वर्कलोड के कारण तो दक्षिण कोरिया में एक रोबोट ने भी सीढ़ियों से छलांग लगा कर आत्महत्या कर ली थी !!!! इसलिए भारत जैसे विशाल देश के हवाई यातायात को सुनियोजित तरीके से नियंत्रित और संचालित करने के लिए  चार बड़े FIR बनाए गए, ताकि हर क्षेत्र के हवाई यातायात को बेहतर ढंग से मॉनिटर किया जा सके।

FIR की असली ताकत – ATC का मास्टर प्लान!

FIR का असली काम यही है कि हर एयरस्पेस के लिए एक टीम हो, जो उड़ते हुए प्लेनों पर लगातार नज़र रखे। जब कोई प्लेन उड़ान भरता है, तो वह अपने FIR के ATC से संपर्क करता है, और जैसे-जैसे वह अपनी मंज़िल की ओर बढ़ता है, वैसे-वैसे अलग-अलग FIRs के ATC के साथ उसका संपर्क बनता जाता है।

 ATC का काम सिर्फ निर्देश देना नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी है कि:

✔ हर प्लेन सही ऊंचाई पर उड़ रहा हो

✔ रास्ते में कोई दूसरा प्लेन उससे बहुत करीब न हो

✔ मौसम की जानकारी पायलट को मिलती रहे

✔ लैंडिंग और टेक-ऑफ बिना किसी गड़बड़ी के हो

कह सकते हैं कि FIR और ATC मिलकर आसमान के ट्रैफिक को उसी तरह कंट्रोल करते हैं, जैसे ज़मीन पर ट्रैफिक लाइट और ट्रैफिक पुलिस करती है। बस फर्क इतना है कि यहां गलती की कोई गुंजाइश नहीं होती, क्योंकि हवा में एक भी चूक बड़े हादसे का कारण बन सकती है! FIR और ATC का तालमेल ही भारत के आसमान को सुरक्षित, व्यवस्थित और सुपर-फास्ट बनाता है। 

भारत के चार FIR – कौन कहां का राजा है?

अब जब हमने चर्चा कर लिया कि FIR यानी Flight Information Region क्या होता है और यह कैसे काम करता है, तो चलिए अब जान लेते हैं कि भारत के आसमान को कौन-कौन से FIR संभालते हैं और उनकी क्या खासियत है।

भारत का हवाई क्षेत्र तो चार बड़े हिस्सों में बंटा हुआ है, ताकि हर क्षेत्र का ट्रैफिक अच्छे से मैनेज किया जा सके। हर FIR के पास अपना कंट्रोल सेंटर भी होता है, जो उस पूरे इलाके की उड़ानों को संभालता है।

division of bharatiya AIR Space FIR ATC
 

ये चार FIR ऐसे हैं:

1️. दिल्ली FIR – उत्तर भारत का सम्राट 

अगर आप दिल्ली, लखनऊ, चंडीगढ़, अमृतसर, जयपुर या उत्तर भारत के किसी भी हवाई अड्डे से यात्रा कर रहे हैं, तो आपकी फ्लाइट दिल्ली FIR के कंट्रोल में होगी। यह FIR पूरे उत्तर भारत के आसमान की निगरानी करता है और यहां की एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC)  टीम सुनिश्चित करती है कि हर उड़ान सुरक्षित, व्यवस्थित और तेज़ी से आगे बढ़े।

दिल्ली FIR खासतौर पर महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि:

✔ यह भारत की राजधानी का हवाई क्षेत्र संभालता है, जहां से हर दिन हजारों फ्लाइट्स उड़ान भरती हैं।

✔ अंतरराष्ट्रीय उड़ानों का एक बड़ा हिस्सा इसी क्षेत्र से होकर गुजरता है।

✔ उत्तर भारत में कई बड़े एयरपोर्ट हैं, जिनकी ट्रैफिक को एक साथ मैनेज करना आसान काम नहीं है!

✔ हेड ऑफिस: इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट, दिल्ली

 ✔ कवर किए जाने वाले इलाके: उत्तर और उत्तर-मध्य भारत

 ✔ ज़रूरी एयरपोर्ट: दिल्ली, जयपुर, अमृतसर, लखनऊ, वाराणसी, श्रीनगर

 ✔ स्पेशल जिम्मेदारी: यूरोप, उत्तरी अमेरिका और उत्तरी एशिया के लिए उड़ने वाली फ्लाइट्स का कंट्रोल।

पाकिस्तान की और से आने वाली फ्लाइट्स को कौन मॉनिटर करता है जी?

मन तो यही प्रश्न आया होगा, है न? और उत्तर भी आप समझ गए होंगे। 

हा-हा-हा-हा दिल्ल्ल्ल्ली 

 

2️. मुंबई FIR – पश्चिम और मध्य भारत का छत्रपति 

अब सोचिए, मुंबई जो कि भारत की आर्थिक राजधानी है, वहां से देश-विदेश के लिए कितनी फ्लाइट्स उड़ती होंगी! मुंबई FIR पश्चिमी और मध्य भारत के पूरे हवाई क्षेत्र की निगरानी करता है, जिसमें महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान का हिस्सा शामिल है।

मुंबई FIR की खास बातें:

✔ मुंबई और पुणे जैसे व्यस्ततम एयरपोर्ट इसी FIR के अंतर्गत आते हैं।

✔ अरब सागर के ऊपर से गुजरने वाली हजारों इंटरनेशनल फ्लाइट्स को यह मैनेज करता है।

✔ यह भारत का सबसे व्यस्ततम FIR में से एक है, जहां हर दिन हजारों विमानों की आवाजाही होती है।

✔ हेड ऑफिस: छत्रपति शिवाजी महाराज इंटरनेशनल एयरपोर्ट, मुंबई

✔ कवर किए जाने वाले इलाके: पश्चिमी और मध्य भारत

 ✔ ज़रूरी एयरपोर्ट: मुंबई, अहमदाबाद, गोवा, नागपुर, पुणे, भोपाल

 ✔ स्पेशल जिम्मेदारी: मिडिल ईस्ट, अफ्रीका और पश्चिमी देशों से आने-जाने वाली फ्लाइट्स

अगर कोई फ्लाइट दुबई, लंदन, अमेरिका, अफ्रीका या खाड़ी देशों से आती है और भारत के पश्चिमी क्षेत्र से एंट्री लेती है, तो सबसे पहले मुंबई FIR की टीम उसे गाइड करती है।

3️. चेन्नई FIR – दक्षिण भारत और समुद्र का रखवाला

अब आते हैं दक्षिण भारत और हिंद महासागर के आसमान को संभालने वाले चेन्नई FIR पर।

✔ अगर आप चेन्नई, बेंगलुरु, हैदराबाद, कोच्चि, तिरुवनंतपुरम या किसी भी दक्षिण भारतीय शहर से उड़ रहे हैं, तो आपकी फ्लाइट चेन्नई FIR के कंट्रोल में होगी।

✔ यह भारत का अकेला ऐसा FIR है, जो सिर्फ ज़मीनी हवाई क्षेत्र ही नहीं, बल्कि समुद्री हवाई क्षेत्र भी कवर करता है। इसका मतलब यह हुआ कि यह न सिर्फ दक्षिण भारत बल्कि हिंद महासागर के एक बड़े हिस्से की उड़ानों को भी संभालता है।

✔ अगर कोई विमान श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड या इंडोनेशिया की तरफ जा रहा है या वहां से आ रहा है, तो चेन्नई FIR ही उसे नियंत्रित करता है।

✔ हेड ऑफिस: चेन्नई इंटरनेशनल एयरपोर्ट, चेन्नई

 ✔ कवर किए जाने वाले इलाके: पूरा दक्षिण भारत और हिंद महासागर का एक बड़ा हिस्सा

 ✔ ज़रूरी एयरपोर्ट: चेन्नई, बेंगलुरु, हैदराबाद, कोच्चि, त्रिवेंद्रम, कोयंबटूर, विशाखापट्टनम

 ✔ स्पेशल जिम्मेदारी:

 ✔ दक्षिण भारत के सभी एयरपोर्ट का डेटा मॉनिटर करता है

 ✔ बंगाल की खाड़ी के ऊपर से गुजरने वाली समुद्री फ्लाइट्स को कंट्रोल करता है

 ✔ सिंगापुर, मलेशिया और ऑस्ट्रेलिया जाने वाली ट्रांज़िट फ्लाइट्स का हब

चेन्नई FIR इसलिए भी बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि यहीं से कई अंतरराष्ट्रीय समुद्री उड़ानों का संचालन होता है। यह क्षेत्र साइक्लोन और मानसूनी प्रभावों से भी प्रभावित रहता है, इसलिए यहां की ATC टीम को हमेशा सतर्क रहना पड़ता है।

4️. कोलकाता FIR – पूर्वी और उत्तर-पूर्वी भारत का दादा 

अब बारी आती है भारत के पूर्वी और उत्तर-पूर्वी हिस्से की। अगर आप कोलकाता, गुवाहाटी, भुवनेश्वर, पटना या पूर्वोत्तर के किसी भी एयरपोर्ट से उड़ान भर रहे हैं, तो आपकी फ्लाइट कोलकाता FIR के कंट्रोल में होगी।

✔ कोलकाता FIR भारत का पूर्वी द्वार माना जाता है, क्योंकि यहीं से कई इंटरनेशनल फ्लाइट्स बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, चीन और दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के लिए रवाना होती हैं।

✔ यह क्षेत्र पहाड़ों, नदियों और घने जंगलों से भरा हुआ है, इसलिए यहां हवाई मार्ग की नेविगेशन को लेकर ज्यादा सतर्कता बरती जाती है।

✔ उत्तर-पूर्वी भारत का क्षेत्र मौसम के बदलावों से प्रभावित रहता है, इसलिए यहां मौसम की सटीक जानकारी और ट्रैफिक कंट्रोल बेहद अहम हो जाता है।

✔ हेड ऑफिस: नेताजी सुभाष चंद्र बोस इंटरनेशनल एयरपोर्ट, कोलकाता

 ✔ कवर किए जाने वाले इलाके: पूर्वी और उत्तर-पूर्वी भारत

 ✔ ज़रूरी एयरपोर्ट: कोलकाता, भुवनेश्वर, गुवाहाटी, बागडोगरा, इंफाल, अगरतला

 ✔ स्पेशल जिम्मेदारी: ईस्ट एशिया और साउथईस्ट एशिया जाने वाली फ्लाइट्स को ट्रैक करता है

कोलकाता FIR भारत की पूर्वी सीमा के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यही वो जगह है, जहां से भारत का हवाई संपर्क चीन, बांग्लादेश, म्यांमार और नेपाल जैसे देशों से जुड़ता है।

तो कौन सा FIR सबसे महत्वपूर्ण है?

अब सवाल ये आता है कि इन चारों में सबसे महत्वपूर्ण कौन सा है? असल में, हर FIR की अपनी खासियत और अपनी चुनौतियां हैं।

 दिल्ली FIR – देश की राजधानी को संभालता है, अंतरराष्ट्रीय उड़ानों का बड़ा हब है।

 मुंबई FIR – भारत का सबसे व्यस्ततम हवाई क्षेत्र, अंतरराष्ट्रीय और समुद्री ट्रैफिक से जुड़ा है।

 चेन्नई FIR – दक्षिण भारत और हिंद महासागर की उड़ानों को नियंत्रित करता है।

 कोलकाता FIR – पूर्वोत्तर और पड़ोसी देशों के लिए भारत का मुख्य हवाई मार्ग है।

सच कहें, तो ये चारों FIR मिलकर भारत के हवाई यातायात को सुरक्षित और व्यवस्थित बनाते हैं। अगर इनमें से किसी एक की भी लापरवाही हो जाए, तो हवाई यातायात में बड़ी गड़बड़ी हो सकती है! इसलिए मुझे तो सभी महत्वपूर्ण लगते हैं। अब जो इस विषय के विशेषज्ञ होंगे वो बता पाएंगे की इनमे भी सबसे महत्वपूर्ण कौन है और क्यों है? हां, अगर मुझे पता चला तो मई अगले किसी ब्लॉग में उसके बारे में लिखूंगा। इसके बारे में उपदटेस आपको हमारे व्हाट्सप्प चैनल पर मिल जायेगा।  यहाँ पर क्लिक कर कृपया व्हाट्सप्प चैनल से जुड़ जाइएगा।  

an airplane cockpit with a pilot communicating with air traffic control (ATC)
 

आखिर पायलट और ATC आपस में बात कैसे करते हैं? 

हमने  ATC यानी एयर ट्रैफिक कंट्रोल कैसे पूरे हवाई सिस्टम को मैनेज करता है इसकी थोड़ी मोटी-मोटी चर्चा की। पर मन में ये भी टंपराशं उठता है कि आखिर पायलट और ATC आपस में बात कैसे करते हैं? जब प्लेन हजारों फीट ऊपर उड़ रहा होता है, तो नीचे बैठे ATC ऑफिसर से उसका संपर्क कैसे बना रहता है? क्या पायलट फोन पर कॉल करता है? या फिर कोई और हाई-टेक तरीका इस्तेमाल होता है? वॉकीटॉकी हपगा तो इतना घर्र-घर्र करेगा की पाइलट बेचारा बोलेगा भाई अब बस कर मैं ऐसे ही संभल लूँगा। 

चलिए, इस दिलचस्प तकनीक की परतें खोलते हैं और जानते हैं कि आसमान में उड़ते पायलट और जमीन पर बैठे ATC के बीच बातचीत कैसे होती है।

 1. VHF रेडियो – हवाई यातायात की लाइफलाइन!

सबसे पहले बात करते हैं VHF रेडियो की, जिसे वेरी हाई फ्रीक्वेंसी (Very High Frequency) रेडियो कहते हैं। यह ठीक वैसा ही सिस्टम है, जैसा पुलिस, सेना या बचाव दल के पास होता है, बस यह उससे कहीं ज़्यादा उन्नत और तेज़ होता है।

VHF रेडियो का रोल क्या है जी?

✔ जब कोई फ्लाइट उड़ान भरती है, तो वह अपने नज़दीकी ATC टॉवर से संपर्क करती है।

✔ ATC पायलट को टेक-ऑफ, हवा में ऊंचाई बनाए रखने और लैंडिंग से जुड़ी ज़रूरी जानकारी देता है।

✔ किसी भी आपात स्थिति में तुरंत कम्युनिकेशन हो सके, इसलिए यह सिस्टम बेहद मज़बूत और भरोसेमंद होता है।

मज़े की बात तो ये है कि प्लेन के अंदर पैसेंजर जिस “कैप्टन स्पीकिंग..." वाली आवाज़ को सुनते हैं, वो भी इसी रेडियो सिस्टम के ज़रिए आती है! 

2. रडार सर्विलांस – ATC की एक्स-रे नज़र!

अब सवाल ये आता है कि जब हजारों किलोमीटर दूर कोई प्लेन उड़ रहा होता है, तो ATC उसे देखता कैसे है? इसका जवाब है – रडार!

कैसे काम करता है रडार सर्विलांस?

✔ ATC सेंटर में बड़े-बड़े मॉनिटर्स होते हैं, जिन पर सभी उड़ानें लाइव ट्रैक होती रहती हैं।

✔ हर प्लेन के ट्रांसपोंडर से एक खास सिग्नल निकलता है, जिसे रडार पकड़ लेता है।

✔ रडार सिस्टम हर सेकंड अपडेट देता रहता है कि कौन-सा प्लेन कहां है, कितनी स्पीड से जा रहा है और किस ऊंचाई पर है।

इंटरेस्टिंग फैक्ट ये है कि ये रडार सिस्टम इतना एडवांस है कि वह सिर्फ प्लेन को ट्रैक ही नहीं करता, बल्कि मौसम की जानकारी भी देता है, ताकि खराब मौसम में फ्लाइट को सही दिशा में मोड़ा जा सके! 

3. सैटेलाइट ट्रैकिंग – दूर से भी सबकुछ क्लियर!

अब सोचिए, प्लेन जब समुद्र के ऊपर या किसी ऐसे इलाके से गुजर रहा हो, जहां रडार कवरेज नहीं हो सकता, तब क्या होगा? क्या ATC वहां की फ्लाइट्स को मॉनिटर नहीं कर पाएगा? 😱

यही तो असली कमाल है सैटेलाइट ट्रैकिंग सिस्टम का!

ओ जी,  सैटेलाइट से ट्रैकिंग कैसे होती है?

✔ आधुनिक प्लेनों में ADS-B (Automatic Dependent Surveillance–Broadcast) सिस्टम लगा होता है, जो प्लेन की सटीक लोकेशन सैटेलाइट के ज़रिए ATC तक पहुंचाता है।

✔ सेटेलाइट कम्युनिकेशन सिस्टम (SATCOM) की मदद से ATC दुनिया के किसी भी कोने में उड़ रहे प्लेनों पर नज़र रख सकता है।

✔ इस तकनीक की वजह से अब फ्लाइट्स को लंबे समुद्री रास्तों या दुर्गम पहाड़ों पर भी पूरी सुरक्षा के साथ उड़ने का भरोसा मिलता है।

दुनिया का सबसे एडवांस सैटेलाइट ट्रैकिंग सिस्टम किसका है?

इरिडियम और इनमारसैट जैसी कंपनियां पूरे ग्लोब के हवाई क्षेत्र को सुरक्षित करने में मदद कर रही हैं! तब तो इन्ही का होगा न? नहीं तो कहे लोग इनके सिस्टम को इस्तेमाल करते?

तो भइया, अब समझ में आया कि आसमान में उड़ते पायलट और ज़मीन पर बैठे ATC के बीच बातचीत कितनी शानदार और हाई-टेक होती है? 

एक छोटे से टेक-ऑफ से लेकर हजारों किलोमीटर की फ्लाइट तक, हर चीज़ के पीछे VHF रेडियो, रडार सर्विलांस और सैटेलाइट ट्रैकिंग जैसी अत्याधुनिक तकनीक काम करती है। इन सबका तालमेल ही हमें एक सुरक्षित और आरामदायक हवाई सफर का अनुभव देता है। फ्लाइट के टॉयलेट में जाकर भी कुछ लोग फ्लश की आवाज से डर जाते हैं। मैं भी अपनी पहली फ्लाइट में घबरा गया था। नई और अनजानी आवाज थी और हम तो अभी-अभी बड़े हो रहे थे। बच्चा नहीं कहूंगा, काहे कि तब हम स्टार्ट-उप मीट में जा रहे थे फंडिंग मांगने !!!   

तो अगली बार जब आप प्लेन में बैठें, खिड़की से बाहर देखें और बादलों के ऊपर तैरते हुए महसूस करें, तो याद रखिए – आपके सुरक्षित सफर के लिए ज़मीन पर बैठे ATC अधिकारी हर सेकंड चौकन्ना रहते हैं! 

अब जब भी आप किसी हवाई जहाज़ में बैठेंगे और वो "This is your captain speaking…" वाली जादुई आवाज़ सुनेंगे, तो समझ जाना कि यह सिर्फ एक पायलट नहीं बोल रहा, बल्कि पूरा एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) सिस्टम उनके पीछे खड़ा है!

सोचिए, ऊपर बादलों के बीच हजारों फीट की ऊंचाई पर एक प्लेन अकेला नहीं उड़ता। उसके हर कदम, हर ऊंचाई, हर मोड़ पर कोई न कोई ATC कंट्रोलर ज़मीन से उसकी सुरक्षा में लगा होता है। यह पूरा सिस्टम किसी जादू से कम नहीं, बल्कि विज्ञान, तकनीक और इंसानी कौशल का अद्भुत मेल है! 

भारत का हवाई क्षेत्र किसी सटीक गणित की तरह चलता है, जहां हर चीज़ का हिसाब-किताब एकदम परफेक्ट होता है।

✔ हर फ्लाइट को मिनट-दर-मिनट मॉनिटर किया जाता है।

✔ हर एयर ट्रैफिक कंट्रोलर की नज़र एक-एक जहाज़ पर होती है।

✔ हर रेडियो कॉल, हर रडार सिग्नल, हर सैटेलाइट ट्रैकिंग सिस्टम – सबकुछ सिंक्रोनाइज़ तरीके से काम करता है।

यानी, जब आप बादलों के बीच आराम से सीट बेल्ट बांधकर बैठते हैं, तो ज़मीन पर कई लोग आपकी सुरक्षा को लेकर चौकन्ने रहते हैं! ATC का हर ऑफिसर एक अनदेखा गार्जियन  की तरह होता है, जो बिना किसी दिखावे के हमें आसमान में सुरक्षित रखता है। मन में उनको धन्यवाद बोल दीजिए और जब सामने इस टीम का कोई मिल जाये तो सुखद और सुरक्षित यात्रा के लिए एक धन्यवाद देना तो बनता है दोस्त !

THANKS
 

कैसा लगा यह सफर हवाई जहाज़ और ATC के अद्भुत संसार का?  अच्छा लगा? बोर तो नहीं हो गए/गईं आप?

मजा आया होगा तो  

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यहाँ तक पढ़ने के लिए धन्यवाद 

आपकी सभी यात्राएं सुखद और सुरक्षित हों

विकास  

 

 


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