इस वर्ष सरस्वती पूजा के दौरान पश्चिम बंगाल, झारखंड और अन्य राज्यों में घटी घटनाएँ केवल समाचार नहीं, बल्कि भारतीय समाज और सरकार के लिए गहरी चेतावनी हैं। कोलकाता के जोगेशचंद्र कॉलेज में छात्रों को धमकियाँ दी गईं कि वे पूजा न करें, और भारी पुलिस सुरक्षा में पूजा संपन्न हुई । क्या कोलकाता कराची या कोमिल्ला बनता जा रहा है? विचारणीय है कि धार्मिक स्वतंत्रता के रहते, बहुसंख्यक समाज को ही अपनी आस्था प्रकट करने के लिए पुलिस सुरक्षा की आवश्यकता क्यों पड़ी? झारखंड में प्रतिमा विसर्जन के दौरान पथराव और हिंसा हुई, जबकि मुर्शिदाबाद और मालदा जैसे मुस्लिम बहुल जिलों में हिंदू त्योहार बिना पुलिस सुरक्षा के संभव नहीं। वहीं, मुंबई में अभिनेता सैफ अली खान पर हमला करने वाला भी बांग्लादेशी घुसपैठिया निकला।

ये घटनाएँ दर्शाती हैं कि बांग्लादेशी घुसपैठ और जनसांख्यिकी असंतुलन एक गंभीर समस्या बन चुकी है, जो भारत की सांस्कृतिक पहचान, सामाजिक ढाँचा, और आंतरिक सुरक्षा को प्रभावित कर रही है। भारत में लगभग 2 करोड़ से अधिक बांग्लादेशी अवैध रूप से रह रहे हैं, जो असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में स्थानीय राजनीति और जनसांख्यिकी को प्रभावित कर रहे हैं। इन क्षेत्रों में स्थानीय लोगों की सांस्कृतिक और राजनीतिक स्थिति पर खतरा मंडरा रहा है, जबकि कोलकाता, दिल्ली और मुंबई में अपराधों में इनकी संलिप्तता बढ़ती जा रही है, जिससे कानून व्यवस्था भी बिगड़ रही है।
बांग्लादेशी घुसपैठ भारतीय नागरिकों के अधिकारों और संसाधनों पर गंभीर प्रभाव डाल रही है। ये अनुप्रवेशकारी बिना कानूनी दस्तावेजों के भारत में रहकर सरकारी योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं। फर्जी आधार, राशन कार्ड और वोटर आईडी बनवाने से देश की सुरक्षा खतरे में है। हमारे नागरिकों के अधिकारों पर आघात हो रहा है। मजदूरी बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ने से स्थानीय श्रमिकों का रोजगार छीना जा रहा है। कटिहार, किशनगंज, से लेकर कोलकाता तक कई ऐसे मार्ग हैं जहां तीन-पहिए अटो-टोटो बांग्लादेशी ही चला पा रहे हैं। सोचिए परिवहन विभाग और स्थानीय राजनीति में कितनी दखल होने पर ये संभव है! पश्चिम बंगाल और असम में ये घुसपैठिए ज़मीनें खरीदकर हिंदू समुदाय को विस्थापित कर रहे हैं। स्थानीय लड़कियों और यहां तक की विवाहित महिलाओं से भी विवाह कर रहे हैं, जिससे जनसांख्यिकी बदल रही है। संसाधनों पर कब्जा हो रहा है। मुख्यमार्गों के महत्वपूर्ण चौराहों, रेलवे स्टेशन, आदि के आसपास योजनाबद्ध तरीके से इन घुसपैठियों को बसाने का काम स्थानीय ‘ईकोसिस्टम’ कर रहा है। यदि इसे रोका नहीं गया, तो भारत के कई क्षेत्र बांग्लादेश के विस्तार जैसे दिखने लगेंगे। पश्चिम बंग में तो दिखने लगे हैं। ‘मिनी पाकिस्तान’ तक घोषित कर दिए गए हैं।
यह केवल आर्थिक या सांस्कृतिक संकट नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा भी है। 2014-2022 के बीच गिरफ्तार आतंकियों में कई बांग्लादेशी मूल के थे, जिनके संबंध अल-कायदा और जेएमबी जैसे संगठनों से पाए गए। विशेष रूप से पश्चिम बंगाल और असम में पुलिस पर हुए हमलों में इनकी संलिप्तता उजागर हुई है। इन घुसपैठियों का स्थायी रूप से बसना और सुरक्षा बलों पर हमला करना भारत की आंतरिक स्थिरता के लिए बड़ा खतरा बन चुका है, जिस पर तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है। भारतीय संविधान देश की संप्रभुता की रक्षा का संकल्प लेता है और नागरिकता अधिनियम, 1955 स्पष्ट रूप से यह कहता है कि कोई भी विदेशी, जो वैध दस्तावेज़ों के बिना भारत में प्रवेश करता है, वह भारतीय नागरिक नहीं हो सकता। इसलिए, संविधान और कानून की दृष्टि से अवैध घुसपैठ की समस्या का समाधान सख्त और प्रभावी नीतियों के माध्यम से किया जा सकता है।
सबसे पहले, राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर को पूरे देश में लागू किया जाना चाहिए ताकि घुसपैठियों की पहचान सुनिश्चित हो सके। इसके साथ ही, घुसपैठियों की निर्वासन नीति को कड़ाई से लागू किया जाए ताकि अवैध रूप से भारत में रहने वालों को उनके देश वापस भेजा जा सके। बांग्लादेश के साथ सीमा प्रबंधन को और मजबूत करने की आवश्यकता है, जिसके लिए अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग किया जाना चाहिए ताकि घुसपैठ की घटनाओं को सीमा पर ही रोका जा सके। इसके अतिरिक्त, जनता को देश में मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति पर भी रोक लगानी होगी, क्योंकि राजनीतिक स्वार्थ के कारण ही घुसपैठियों को संरक्षण मिलता है, जिससे समस्या और गंभीर हो जाती है। दिल्ली चुनाव में जंता ने तुष्टिकरण की राजनीति को ठेंगा दिखा दिया है। केवल कठोर कानूनी और प्रशासनिक उपायों के माध्यम से ही इस चुनौती का स्थायी समाधान निकाला जा सकता है।
इस पर ध्यान नहीं दिया गया, तो आने वाले दशकों में भारतीय पहचान और अस्तित्व पर समस्या अवश्यंभावी है। भारत भी अमेरिका की तरह घुसपैठियों को बाहर निकाले और अपने नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करे। ब्लूमबर्ग के अनुसार 2023-24 में बाइडेन प्रशासन ने लगभग 1100 भारतीयों को वापस भेजा था। ट्रंप भी भेज रहे हैं। इसलिए यह केवल किसी एक दल के सरकार की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि प्रत्येक भारतीय नागरिक की भी जिम्मेदारी है कि वह जागरूक बने, सरकारों पर दबाव बनाए और घुसपैठियों को संरक्षण देने वाली राजनीति और संगठनों के विरुद्ध आवाज उठाए। भारत की सुरक्षा और संप्रभुता के लिए यह निर्णायक क्षण है—क्या हम अपनी पहचान बचाने के लिए तैयार हैं? ध्यातव्य हो इन बांग्लादेशियों ने बंग बंधु शेख मुजिबुर्रहमान की हत्या से लेकर 32 धानमंडी के उनके धरोहर आवास तक को जला कर खाक कर दिया। जिस भारत ने इनको स्वाधीनता का स्वाद चखाया उसके राष्ट्रीय ध्वज को पददलित किया। भारतीय राज्यों के कब्जे की बात की। तथाकथित छात्र आंदोलन ने जब शेख हसीना की तख्तापलट करवाई तो कोलकाता में मिठाई बांटी गई। चौंक गए ना? ऐसी कृतध्न और जिहादी अनुप्रवेशकारी जमात किसी भी घोषित शत्रु से अधिक खतरनाक है। इसलिए इनका चिन्हिकरण और यथाशीघ्र निर्वासन पर भारत सरकार को युद्धगति से काम करना चाहिए।

यह स्तम्भ दैनिक स्वदेश में 9 फरवरी 2025 को प्रकाशित हुआ।