16 दिसंबर 2024, विजय दिवस के अवसर पर ‘बंग विवेक’ के आह्वान पर हिन्दू सुरक्षा समिति ने रानी रासमणि रोड पर एक सभा आयोजित की। यह कार्यक्रम बांग्लादेश सरकार द्वारा हिन्दुओं के जातीय निर्मूलन और मानवाधिकार हनन के खिलाफ था। विश्व मानवाधिकार दिवस पर भी इस मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन हुए, जिनका उद्देश्य वैश्विक ध्यान आकर्षित करना और मानवता के प्रति जागरूकता फैलाना था। भारतीय और वैश्विक हिन्दू समुदाय ने इस आक्रोश को रैलियों, प्रदर्शन, और मीडिया में प्रकट किया।16 दिसंबर की सभा में भारत सेवाश्रम संघ के अध्यक्ष स्वामी प्रदीप्तानंद जिन्हें श्रद्धा से कार्तिक महाराज के नाम से भी लोग पुकारते है, जैसे हिन्दू समाज के दिशानिर्देशक संत गण, वैज्ञानिक, शिक्षक, वकील और अन्यान्य समाजसेवी गणमान्य व्यक्तियों के साथ-साथ निर्वाचित सांसद-गण भी उपस्थित थे।

बांग्लादेश में सरकार, सेना, पुलिस और जिहादियों द्वारा हिन्दुओं के जातीय निर्मूलन ने पश्चिम बंगाल सहित विभिन्न प्रदेशों के हिन्दुओं में यह संकल्प जगाया कि "और कितना भागोगे?"। वैज्ञानिक जिष्णु बासु ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और बांग्लादेश के संघर्ष में हिन्दू बलिदानियों की वीरगाथा स्मरण कर कहा, "अब पलायन नहीं, पराक्रम की प्रस्तुति हो।" इस विराट हिन्दू सभा ने समाज में नवजागरण की लहर उत्पन्न की। कार्यक्रम को प्रशासन ने अनुमति नहीं दी, जिससे आयोजकों को न्यायालय जाना पड़ा। कोर्ट की अनुमति के बाद कोलकाता में सभा सफलतापूर्वक आयोजित हो सकी। यह प्रशासन के असहयोग का पहला मामला नहीं है। साधारणतः यहाँ हिन्दू समाज को प्रशासनिक अनुमति प्राप्त नहीं होती, या कानूनी दांव-पेंच लगाकर इतनी देरी कर दी जाती है कि आयोजक को प्रभावी कार्यक्रम हेतु प्रस्तुति का समय न मिले। 2017 मकर संक्रांति उत्सव के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में होने वाले कार्यक्रम की अनुमति भी कोलकाता उच्च न्यायलय से लेनी पड़ी थी। श्री राम जन्मभूमि मंदिर हेतु श्रद्धा निधि संग्रह के दौरान भी कोलकाता पुलिस के विभिन्न थाना-क्षेत्रो में विश्व हिन्दू परिषद् के कार्यकर्ताओं को प्रशासनिक बाधा का सामना करना पड़ा था।

आश्चर्यजनक है कि रानी रासमणि रोड पर 16 दिसंबर को हिन्दू समाज को कार्यक्रम के लिए न्यायालय जाना पड़ा, जबकि 19 दिसंबर को मुस्लिम समाज ने प्रशासन के पूर्ण सहयोग से उसी स्थान पर वक्फ संशोधन कानून 2024 के विरोध में बड़ा आयोजन किया। दोनों दिन कार्यालय और बाजार खुले थे, और ट्रैफिक सामान्य था। फिर भी प्रशासन की यह द्विचारिता क्यों? कोलकाता के राजा बाजार, मेटिया ब्रूज, पार्क सर्कस जैसे क्षेत्रों में ट्रैफिक नियमों का भेदभावपूर्ण पालन स्पष्ट दिखता है। जालीदार टोपी पहने तीन लोग एक स्कूटी पर चलते हैं और पुलिस कुछ नहीं कहती, जबकि अन्य के लिए कड़े जुर्माने लगाए जाते हैं। यह भेदभाव संविधान के "समानता के अधिकार" के विपरीत है। आखिर हिन्दू समाज को दोयम दर्जे का व्यवहार क्यों सहना पड़ता है?

कोलकाता के महापौर और राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के वक्तव्य इस प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। 2019 में ममता बनर्जी ने कहा , "क्या मैं मुस्लिमों का तुष्टिकरण करती हूँ? सौ बार करूँगी। जो गाय दूध देती है उसकी लात भी खानी चाहिए!" यह बयान राज्य के प्रशासनिक दृष्टिकोण पर सवाल खड़े करता है। राज्य के 23 में से 13 जिलों में मुस्लिम समुदाय प्रभावी है, जिससे पुलिस और प्रशासन की निष्पक्षता प्रभावित होती है। थानों में मुस्लिमों के खिलाफ मामले दर्ज कराना मुश्किल होता है, और अक्सर समझौते का दबाव बनाया जाता है। शेख शाहजहां वाले संदेशखाली मामले में सरकार ने उसे बचाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय तक प्रयास किया।

फिरहाद हाकिम ने गैर-मुस्लिमों को इस्लाम में आने का निमंत्रण दिया। उसने कहा , "एक दिन हम बहुसंख्यक होंगे और न्याय मांगेंगे नहीं, बल्कि न्याय देंगे।" संवैधानिक पद पर बैठे ऐसे व्यक्ति का कट्टरपंथी बयान और उस पर कानूनी कार्रवाई का अभाव पुलिस-प्रशासन और समाज पर गंभीर प्रभाव डालता है। हिन्दू समाज इन घटनाओं को स्तब्ध होकर देख रहा है, जबकि हिंसक बयान, जिहादी मानसिकता को भड़काने वाले भाषण, और कानूनों का उल्लंघन निर्भयता से हो रहा है। प्रशासन या तो इन्हें बचा रहा है या मौन समर्थन दे रहा है। विगत लोकसभा चुनाव में तृणमूल नेता हुमायूं कबीर ने हिन्दुओं को भागीरथी में फेंकने की धमकी दी, लेकिन सरकार ने कुछ नहीं किया।

विगत एक दशक से धीरे-धीरे पश्चिम बंग में हिन्दू समाज दोयम दर्जे का नागरिक बनाया जा रहा है। तृणमूल, भाजपा, कांग्रेस या वामपंथी दलों के समर्थक या कार्यकर्ताओं के रूप में हिन्दू समाज विभक्त है। हिन्दू समाज के रूप में उसकी एक पहचान वामपंथी विमर्श ने उससे छीन ली है। हर चीज का राजनीतिकरण हो गया है। पर दुधारू गाय आज इसलिए लात मर कर भी कानून के हाथों से बच जा रही है क्योंकि उसने अपनी पहचान और अपना मतदान एकनिष्ठ रखी है। यह दूधारू गाय किसी भी राजनितिक दल के कार्यकर्ता को अपने योजनानुसार या कभी-कभी तो इक्षानुसार भी लात मार देती है। 2021 के विधानसभा चुनाव के बाद की हिंसा में जो दुकान लुटे गए उसमे बहुत से दुकान उन हिन्दुओं के भी थे जो तृणमूल या वामपंथी दलकर्मी थे। लुटे जाने का कारण उनकी हिन्दू पहचान थी। आज इसी पहचान के कारण बांग्लादेश में हिन्दू मारे जा रहे हैं। दोयम दर्जे का नागरिक बनते जा रहे पश्चिम बंग के हिन्दू समाज को बांग्लादेश से शिक्षा ले कर त्वरितगति से अपने सामाजिक और राजनीतिक चेतना को पुनर्जागृत कर एक हिन्दू के रूप में संगठित होना होगा। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता अधीर रंजन चौधुरी कह रहे है कि “छोटे राजनीतिक खेल खेलने से पश्चिम बंगाल और देश दोनों खत्म हो जाएंगे। गंभीर बनिए।”

Published In Swadesh Daily on 5th January 2025.
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