हर वर्ष 11 जुलाई को ‘विश्व जनसंख्या दिवस’ (World Population Day) मनाया जाता है। इस दिवस की शुरुआत वर्ष 1989 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा की गई थी, जब वैश्विक जनसंख्या ने 5 अरब का आंकड़ा पार किया। इसका उद्देश्य था – दुनिया को जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न होने वाली सामाजिक, आर्थिक, और पारिस्थितिकीय चुनौतियों के प्रति जागरूक करना। लेकिन बदलते वैश्विक परिदृश्य में यह दिन अब सिर्फ जनसंख्या नियंत्रण की चर्चा तक सीमित नहीं रहा, बल्कि अब यह एक नए दृष्टिकोण की मांग करता है , एक ऐसा दृष्टिकोण जो जनसंख्या को समस्या नहीं, बल्कि संसाधन, शक्ति और संभावना के रूप में देखे।
विश्व जनसंख्या दिवस अब मात्र आंकड़ों और जनसंख्या घनत्व पर चर्चा करने का अवसर नहीं है, बल्कि यह सोचने का एक महत्वपूर्ण अवसर है कि हम अपनी जनसंख्या को किस तरह एक शक्तिशाली संपदा में बदल सकते हैं। “हमारी जनसंख्या हमारी शक्ति है” इस नए दृष्टिकोण को मजबूती से स्वीकार करने की आवश्यकता है। यह हमें यह सोचने पर प्रेरित करती है कि किस प्रकार एक बड़ी जनसंख्या, यदि उसे सही दिशा, संसाधन और अवसर मिले, तो वह किसी भी राष्ट्र को वैश्विक शक्ति बना सकती है।
भारत जैसे युवा जनसंख्या वाले देश के लिए यह विषय अत्यंत प्रासंगिक है। आज भारत विश्व की सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन चुका है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की जनसंख्या ने वर्ष 2023 में चीन को पीछे छोड़ते हुए 1.44 अरब का आंकड़ा पार कर लिया है। अब यह हमारे लिए एक निर्णायक मोड़ है । क्या हम इस विशाल मानवसंसाधन को एक निर्बल भार की तरह ढोते रहेंगे, या इसे उत्पादक शक्ति में रूपांतरित कर, देश को एक वैश्विक आर्थिक और सामरिक शक्ति बनाएंगे?
जनसंख्या का मतलब केवल संख्या नहीं है; यह मनुष्य की क्षमता, रचनात्मकता, श्रम, उपभोग, नवाचार और नेतृत्व का प्रतिनिधित्व करती है। यह युवा पीढ़ी ही है जो नए विचार लाती है, स्टार्टअप शुरू करती है, तकनीकी समाधान खोजती है, उत्पादन करती है और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में देश को आगे बढ़ाती है। भारत की 65% से अधिक जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु की है, जो दुनिया के किसी भी अन्य बड़े देश के मुकाबले एक अद्वितीय जनसांख्यिकीय स्थिति है। इसे ही डेमोग्राफिक डिविडेंड कहा जाता है, वह अवधि जब कार्यशील आयु वर्ग की जनसंख्या अधिक हो और आश्रित जनसंख्या कम। इसलिए हमने कहा कि हमारी जनसंख्या हमारी शक्ति है।
लेकिन इस लाभ को वास्तविक शक्ति में तब्दील करने के लिए सशक्त नीतियों, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं, कौशल विकास और रोजगार सृजन की आवश्यकता है। तभी हम यह दावा कर सकेंगे कि हां, हमारी जनसंख्या हमारी शक्ति है।
इतना ही नहीं, जनसंख्या का एक और महत्वपूर्ण पहलू है, बाजार और उपभोगशक्ति। भारत की विशाल जनसंख्या देश को विश्व का सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार बनाती है। इससे निवेशकों, उत्पादकों और सेवा प्रदाताओं को स्थायित्व और अवसर मिलता है। यही वजह है कि भारत आज ग्लोबल इन्वेस्टमेंट हॉटस्पॉट बन चुका है। विदेशी कंपनियां, चाहे टेक्नोलॉजी हो या उपभोक्ता वस्तुएं, भारत में अपनी उपस्थिति को विस्तार देने के लिए होड़ कर रही हैं और इसका सीधा कारण है हमारी बड़ी और युवा जनसंख्या।
इसलिए आज जनसंख्या दिवस के अवसर पर हमें यह विचार करना चाहिए कि संख्या में शक्ति है, यदि हम उसे जागरूक, शिक्षित, प्रशिक्षित और संगठित करें। जनसंख्या कोई संकट नहीं, वह हमारे विकास का मूल आधार बन सकती है, यदि उसे दृष्टिकोण परिवर्तन, नीतिगत समर्पण और लोकसहभागिता से जोड़ा जाए। यह 21वीं सदी के भारत की नियति और अवसर का सार है। इस सोच के साथ अगर हम आगे बढ़ते हैं, तो न केवल हम अपनी आंतरिक क्षमताओं को पहचान पाएंगे, बल्कि एक सशक्त, आत्मनिर्भर और वैश्विक भारत का निर्माण कर सकेंगे।
भारत की सबसे बड़ी पूंजी उसकी विशाल श्रमशक्ति (Workforce) है, जो न केवल देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है बल्कि भारत को दुनिया का अगला मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने की दिशा में निर्णायक भूमिका निभा रही है। विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर वर्ष लगभग 1.2 करोड़ युवा कार्यबल में प्रवेश करते हैं, जो दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती श्रमिक आबादी में से एक है। यही कारण है कि सरकार ने “Make in India”, “Atmanirbhar Bharat” और “Production Linked Incentive (PLI) Scheme” जैसी योजनाएं शुरू कीं, जिनका उद्देश्य इस श्रमबल को उत्पादकता, नवाचार और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करना है। ILO के मुताबिक, भारत में कार्यशील जनसंख्या (15–64 वर्ष) कुल जनसंख्या का लगभग 67% है, जो चीन, अमेरिका और यूरोपीय देशों की तुलना में अधिक है। यह जनसंख्या भारत को सस्ते और कुशल श्रमिकों का एक ऐसा हब बनाती है, जो वैश्विक विनिर्माण कंपनियों के लिए अत्यंत आकर्षक है।
इसके साथ ही, भारत तकनीकी सेवा क्षेत्र में भी अग्रणी बनता जा रहा है। NASSCOM की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में IT और BPM सेक्टर में कार्यरत पेशेवरों की संख्या 50 लाख से अधिक है, और भारत इस क्षेत्र में विश्व का दूसरा सबसे बड़ा वर्कफोर्स केंद्र बन चुका है। McKinsey Global Institute के अनुसार, यदि भारत अपनी श्रम शक्ति को उचित शिक्षा और कौशल के साथ सशक्त बनाए, तो 2030 तक भारत की अर्थव्यवस्था में $500 अरब से $700 अरब का अतिरिक्त योगदान दिया जा सकता है। इसके अलावा, Skill India Mission के तहत 2024 तक 2.5 करोड़ से अधिक लोगों को कौशल प्रशिक्षण दिया जा चुका है, जो इस दिशा में एक सकारात्मक संकेत है।
इन सभी तथ्यों से स्पष्ट है कि भारत की श्रमशक्ति केवल आर्थिक विकास का इंजन नहीं है, बल्कि वह आधार है जिस पर भारत का मैन्युफैक्चरिंग भविष्य और वैश्विक नेतृत्व टिका है।
भारत की विशाल जनसंख्या का एक महत्वपूर्ण पहलू उसकी उपभोक्ता शक्ति (Consumer Power) है, जो देश को विश्व का सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार बनने की दिशा में ले जा रही है। जैसे-जैसे लोगों की आय, शहरीकरण और डिजिटल साक्षरता बढ़ रही है, वैसे-वैसे उपभोग की प्रवृत्तियाँ भी तीव्र गति से बढ़ रही हैं। Statista और World Bank के अनुमानों के अनुसार, 2025 तक भारत में सक्रिय उपभोक्ताओं की संख्या 1 अरब से अधिक होने की संभावना है, जो न केवल चीन बल्कि अमेरिका और यूरोपीय देशों के संयुक्त बाजारों को भी पीछे छोड़ सकता है।
Bain & Company और World Economic Forum के एक संयुक्त अध्ययन के अनुसार, भारत का मध्यवर्ग (Middle Class) 2030 तक वर्तमान से दोगुना हो जाएगा, और यह तब तक कुल उपभोक्ता खर्च का लगभग 80% योगदान देगा। यह उभरता हुआ मिडल क्लास न केवल उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों और सेवाओं की मांग करता है, बल्कि नवाचार, ब्रांड वैल्यू और डिजिटल अनुभव को भी प्राथमिकता देता है।
इस विशाल और विविधतापूर्ण उपभोक्ता आधार ने भारत को फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट (FDI) का आकर्षण केंद्र बना दिया है। DPIIT के अनुसार, वित्त वर्ष 2023-24 में भारत में लगभग $85 बिलियन डॉलर का FDI दर्ज किया गया, जिसमें ई-कॉमर्स, रिटेल, फूड प्रोसेसिंग और टेक्नोलॉजी सेक्टर प्रमुख रहे। वहीं, देश के भीतर स्टार्टअप्स और MSMEs को भी इस उपभोक्ता वर्ग से निरंतर मांग और अवसर मिल रहा है। Startup India के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 2024 तक 1 लाख से अधिक स्टार्टअप्स पंजीकृत हो चुके हैं, जिनमें से अधिकांश घरेलू उपभोक्ताओं की समस्याओं और जरूरतों को ध्यान में रखकर विकसित किए गए हैं।
डिजिटल पेमेंट्स, ऑनलाइन खरीदारी, OTT, फूड डिलीवरी, हेल्थकेयर और एजुकेशन जैसे क्षेत्रों में यह उपभोक्ता वर्ग डिजिटल इकोनॉमी को नयी ऊर्जा और दिशा प्रदान कर रहा है। UPI के माध्यम से हर महीने होने वाले 1,200 करोड़ से अधिक ट्रांजेक्शन यह दर्शाते हैं कि भारत का उपभोक्ता वर्ग अब सिर्फ मात्रा में नहीं, गुणवत्ता, तकनीक और सुविधा के दृष्टिकोण से भी आगे निकल चुका है।
अतः यह कहा जा सकता है कि भारत की जनसंख्या, विशेषकर उसका उपभोक्ता वर्ग, न केवल आर्थिक विकास की गति को बढ़ा रहा है बल्कि वैश्विक निवेश, नवाचार और उद्यमशीलता के लिए भी एक शक्तिशाली इंजन बन चुका है।
भारत की बढ़ती जनसंख्या न केवल मात्रा में वृद्धि का संकेत देती है, बल्कि यह नवाचार (Innovation) और उत्पादकता (Productivity) की असीम संभावनाओं का द्वार भी खोलती है। अधिक जनसंख्या का अर्थ है – अधिक विचार, अधिक दृष्टिकोण, अधिक प्रतिभा, और इन सबसे मिलकर पैदा होते हैं नए समाधान, जो समाज, उद्योग और राष्ट्र की दिशा बदल सकते हैं।
भारत हर वर्ष शिक्षा के क्षेत्र में एक विशाल कार्यबल तैयार करता है। AICTE और MHRD के आंकड़ों के अनुसार, हर साल लगभग 15 लाख इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स और 10 लाख से अधिक मैनेजमेंट ग्रेजुएट्स देश की कार्यशक्ति में शामिल होते हैं। यह संख्या न केवल तकनीकी विशेषज्ञता को दर्शाती है, बल्कि भारत को वैश्विक नवाचार हब में बदलने की संभावनाओं को भी दर्शाती है।
Startup India Report 2024 के अनुसार, भारत में अब तक 1 लाख से अधिक स्टार्टअप्स रजिस्टर्ड हो चुके हैं, जिनमें से हजारों स्टार्टअप्स AI, HealthTech, AgriTech, EdTech और DeepTech जैसे उन्नत क्षेत्रों में कार्यरत हैं। इनमें से कई स्टार्टअप्स ने वैश्विक निवेश हासिल किया है और यूनिकॉर्न क्लब में भी अपनी जगह बनाई है। Hurun India Report 2024 के मुताबिक, भारत में अब 110 से अधिक यूनिकॉर्न स्टार्टअप्स हैं, जो देश की नवाचार क्षमता का प्रमाण हैं।
इसके साथ ही, भारत का R&D इकोसिस्टम भी सशक्त हो रहा है। DST (Department of Science and Technology) की रिपोर्ट के अनुसार, देश में निजी क्षेत्र द्वारा अनुसंधान एवं विकास पर खर्च हर साल औसतन 10% की दर से बढ़ रहा है।
इन सभी तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि भारत की जनसंख्या केवल आर्थिक उपभोग का आधार नहीं है, बल्कि ज्ञान, नवाचार और समाधान की धारा भी है। बशर्ते हम इस मानवशक्ति को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, अनुसंधान प्रोत्साहन और उद्यमिता समर्थन के माध्यम से सही दिशा दें, तो यह देश को वैश्विक नवाचार की अगली राजधानी बना सकती है।
भारत की कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था न केवल खाद्य सुरक्षा का आधार है, बल्कि यह आत्मनिर्भर भारत की नींव भी है। देश की लगभग 70% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है और कृषि, पशुपालन, बागवानी, मत्स्यपालन जैसे क्षेत्रों में सक्रिय है। यदि इस विशाल ग्रामीण मानवसंसाधन को तकनीक, बाजार और वित्तीय पूंजी से जोड़ा जाए, तो यही भारत को वैश्विक कृषि निर्यातक शक्ति में परिवर्तित कर सकता है।
FAO (Food and Agriculture Organization) के अनुसार, भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा खाद्यान्न उत्पादक देश है, जो चावल, गेहूं, दालें, फलों और सब्जियों में वैश्विक उत्पादन में अग्रणी है। इसके अतिरिक्त, भारत दुग्ध, मछली और मसालों के उत्पादन में भी शीर्ष पर है।
APEDA (Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority) के अनुसार, वित्त वर्ष 2023-24 में भारत ने $50 अरब से अधिक कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों का निर्यात किया है, जिनमें प्रमुख रूप से बासमती चावल, फल-सब्जियां, मांस उत्पाद, डेयरी आइटम्स और ऑर्गेनिक फूड शामिल हैं। यह आँकड़ा भारत की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था की वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बढ़ती भूमिका को दर्शाता है।
अब जब सरकार डिजिटल एग्रीकल्चर मिशन, ई-नाम (e-NAM), फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गनाइज़ेशन (FPO) और PM-Kisan योजना जैसी पहलों के माध्यम से किसानों को डिजिटल और वित्तीय समावेशन से जोड़ रही है, तो देश की ग्रामीण नवाचार शक्ति को भी नई दिशा मिल रही है।
इसके साथ ही, AgriTech स्टार्टअप्स जैसे DeHaat, Ninjacart, AgroStar आदि किसानों को स्मार्ट एग्रीकल्चर, सप्लाई चेन, और रीयल-टाइम डेटा से लैस कर रहे हैं, जिससे खेती अब केवल आजीविका नहीं, बल्कि उद्यमिता का रूप ले रही है।
इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि यदि हम ग्रामीण भारत की प्रतिभा, परंपरागत ज्ञान और मेहनत को आधुनिक तकनीक और नीति समर्थन से जोड़ दें, तो भारत की कृषि आधारित उत्पादकता न केवल आत्मनिर्भरता लाएगी, बल्कि भारत को वैश्विक कृषि महाशक्ति भी बना सकती है।
चुनौती नहीं, संसाधन है जनसंख्या
भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में अक्सर जनसंख्या वृद्धि को एक बड़ी सामाजिक और आर्थिक चुनौती के रूप में देखा जाता है। लेकिन सच यह है कि जनसंख्या अपने आप में कोई समस्या नहीं है, बल्कि यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है – जिसे अगर सुनियोजित ढंग से प्रबंधित किया जाए, तो यही जनसंख्या एक अमूल्य संसाधन बन सकती है।
आज के युग में वह देश आगे बढ़ते हैं जो मानव संसाधन को संपत्ति मानकर उसमें निवेश करते हैं। जनसंख्या को बोझ न मानते हुए यदि हम इसे शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल, डिजिटल साक्षरता और सामाजिक जागरूकता के माध्यम से सशक्त करें, तो यही जनसंख्या सृजन, उत्पादन, सेवा और नवाचार का आधार बन सकती है।
जनसंख्या है शक्ति – लेकिन यह शक्ति तभी सार्थक होगी जब यह जागरूक, प्रशिक्षित और संगठित हो। तभी हम कह पाएंगे कि हमारी संख्या ही हमारी सबसे बड़ी क्षमता है।
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सरकार की पहलें: जनसांख्यिकीय लाभ को अवसर में बदलना
भारत सरकार ने बीते कुछ वर्षों में कई ऐसी योजनाएं और कार्यक्रम शुरू किए हैं जिनका उद्देश्य जनसंख्या को समस्याओं से बाहर निकालकर संभावनाओं में बदलना है।
🔹 Skill India Mission: इस मिशन के तहत 2022 तक 1.5 करोड़ युवाओं को प्रशिक्षित किया गया है, ताकि वे रोजगार के योग्य बनें और स्वरोजगार या उद्यमिता की दिशा में आगे बढ़ सकें। यह मिशन भारत के युवा श्रमबल को ग्लोबल स्किल्स इकोनॉमी में प्रतिस्पर्धी बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
🔹 Digital India: डिजिटल सशक्तिकरण के इस अभियान ने अब तक 90 करोड़ से अधिक लोगों को इंटरनेट से जोड़ दिया है, जिनमें बड़ी संख्या ग्रामीण भारत की है। यह न केवल सूचना की पहुंच बढ़ा रहा है, बल्कि डिजिटल वित्तीय लेनदेन, ई-गवर्नेंस, टेलीमेडिसिन और ऑनलाइन शिक्षा जैसे क्षेत्रों में क्रांति ला रहा है।
🔹 Startup India & Standup India: इन पहलों ने युवाओं को केवल नौकरी खोजने वाला नहीं, बल्कि रोजगार देने वाला बनाने पर बल दिया है। Startup India के तहत अब तक 1 लाख से अधिक स्टार्टअप्स को मान्यता मिल चुकी है, जबकि Standup India के तहत विशेष रूप से महिलाओं और अनुसूचित जाति/जनजाति के उद्यमियों को बैंकिंग और पूंजी सहायता दी जा रही है।
इन पहलों ने यह सिद्ध कर दिया है कि यदि सरकार, समाज और बाजार मिलकर कार्य करें, तो बड़ी जनसंख्या चुनौती नहीं, विकास की सबसे बड़ी पूंजी बन सकती है।
इसलिए अब समय आ गया है कि हम जनसंख्या को केवल संख्या की दृष्टि से न देखें, बल्कि उसे सृजनशील शक्ति, सामाजिक संसाधन और आर्थिक इंजन के रूप में पहचानें। यदि इसे संवेदनशील नीतियों और व्यावहारिक योजनाओं के माध्यम से सही दिशा दी जाए, तो यही भारत को विश्वगुरु की दिशा में अग्रसर कर सकती है।
जनसंख्या नहीं, हमारी संभावना है
हर वर्ष जब हम 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाते हैं, तो हमें इसे केवल जनसंख्या नियंत्रण या जनसंख्या वृद्धि की चिंता तक सीमित नहीं रखना चाहिए। यह दिन हमें एक नई सोच की ओर बढ़ने का अवसर देता है — एक ऐसी सोच, जो यह स्वीकार करे कि भारत की विशाल जनसंख्या किसी बोझ की नहीं, बल्कि संभावनाओं की प्रतीक है। हम आज दुनिया की सबसे युवा, सबसे ऊर्जावान और सबसे बड़ी कार्यशील जनसंख्या वाले देश हैं, और यही हमारी सबसे बड़ी सामरिक, सामाजिक और आर्थिक पूंजी है।
हमें यह समझना होगा कि जनसंख्या स्वयं में शक्ति नहीं होती, वह शक्ति तब बनती है जब उसे:
🔹 शिक्षा का अवसर मिले,
🔹 कौशल के साथ सक्षम किया जाए,
🔹 तकनीक से जोड़ा जाए,
🔹 और आत्मनिर्भरता की दिशा में मार्गदर्शन मिले।
यदि हम यह कर पाएं, तो न केवल भारत विश्वगुरु बन सकता है, बल्कि वह वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग, नवाचार, तकनीकी समाधान और उपभोक्ता शक्ति का केंद्र भी बन जाएगा।
इसलिए आइए, इस जनसंख्या दिवस पर हम एक नई प्रतिज्ञा करें:
“जनसंख्या केवल संख्या नहीं, यदि सही दिशा मिले तो वही सबसे बड़ा संसाधन बन जाती है।”
इस 11 जुलाई को जनसंख्या को भार या चुनौती नहीं, बल्कि भारत के भविष्य की अगली छलांग, उसकी वैश्विक उड़ान का आधार मानें। यही सोच हमें नई दिशा देगी, और यही दृष्टिकोण भारत को अगले दशक की मानवशक्ति महाशक्ति बनाएगा।