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स्व-तंत्र विकास का संकल्प दिवस हो

2025-01-26  विप्लव विकास

गणतंत्र दिवस का हर वर्ष आगमन न केवल एक उत्सव है, बल्कि यह उस आत्म-चेतना का क्षण है जब हम अपने स्वतंत्र अस्तित्व, अधिकारों और कर्तव्यों का मूल्यांकन करते हैं। 26 जनवरी, 1950 को ‘हम भारत के लोग’ ने  ‘संविधान को अंगीकृत’ कर यह उद्घोष किया कि यह राष्ट्र अब न केवल स्वाधीन है, बल्कि अपने संचालन के लिए लोकतांत्रिक मूल्यों और सामाजिक न्याय को आधार बनाकर आगे बढ़ेगा। यह दिन हमारी लोकतांत्रिक यात्रा का प्रतीक है, परंतु, क्या यह पर्याप्त है? क्या केवल गणतंत्र की घोषणा भर से हम आत्मनिर्भर और स्वतंत्र हो गए हैं? या फिर यह दिवस हमें अपनी चुनौतियों को पहचानने और अपने स्व-तंत्र विकास के लिए संकल्प लेने का अवसर प्रदान करता है?  

लिच्छवि गणराज्य - प्राचीन भारतीय इतिहास - viplav vikas

Image Source: Prabha001

वैशाली या लिच्छवी गणराज्य के रूप में भारत ने संपूर्ण विश्व को पहला गणतंत्र दिया था। स्वाधीनता प्राप्ति के बाद हमने लोकतंत्र को अपनाया, लेकिन क्या हमने स्व-तंत्रता, अर्थात भारतीय तंत्र और आत्मनिर्भरता के आदर्शों को पर्याप्त प्राथमिकता दी? महात्मा गांधी ने जब "स्वराज" की परिकल्पना की थी, तो वह केवल राजनीतिक स्वतंत्रता तक सीमित नहीं थी। उनका स्वराज आर्थिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक आत्मनिर्भरता पर आधारित था। क्या हम उस स्वराज की दिशा में बढ़ रहे हैं या फिर केवल बाहरी उपलब्धियों के पीछे भाग रहे हैं।  

भारत की संस्कृति और सभ्यता ने सदैव "स्व" को केंद्र में रखा है। कठोपनिषद का "आत्मानं विद्धि" का दर्शन केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि व्यावहारिक भी है। यदि कोई राष्ट्र अपनी आंतरिक शक्तियों को पहचानने और उन्हें विकसित करने में असमर्थ है, तो उसकी स्वाधीनता भी एक भ्रम मात्र बनकर रह जाती है।  

स्व-तंत्र विकास का अर्थ है व्यक्तिगत और सामूहिक स्तर पर भारतीय स्वत्त्व के आधार पर सार्विक आत्मनिर्भरता की प्राप्ति। यह केवल आर्थिक आत्मनिर्भरता नहीं, बल्कि मानसिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक और तकनीकी स्वतंत्रता का भी पर्याय है। आज भारत डिजिटल युग में प्रवेश कर चुका है, परंतु क्या यह डिजिटल तंत्र हमारा है? क्या हमारी जनता को भारतीय ‘सर्च इंजन’, ‘सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म’ मिला है? हमारा डेटा अमेरिकी और यूरोपीय डेटा सेंटर्स में है! क्या हम उनके सबसे बड़े ‘डिजिटल कालोनी’ नहीं बन ग‌ए?

हमारी शिक्षा प्रणाली आज भी औपनिवेशिक ढांचे में बंधी हुई प्रतीत होती है। अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति और इसका ‘इकोसिस्टम’ इतना मजबूत तंत्र विकसित कर चुका है कि आयुर्वेद से संपूर्ण आरोग्य की बात करते ही न्यायालय में ये लोग चुनौती देते हैं। दैनिक व्यवहार की वस्तुओं के बाजार में पतंजलि जैसे स्वदेशी उपक्रम की हिस्सेदारी बढ़ते ही उसको कानूनी रूप से निशाना बनाने का षड्यंत्र शुरू हो जाता है। अमृतकाल में आरोग्य की भारतीय चिकित्सा पद्धति को वैकल्पिक से मुख्य धारा में कानूनी रूप से अपनाया जाना चाहिए ताकि ये चिकित्सा प्रणालियां भी अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति की तरह काम कर सकें। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के निदेशक ने जब गोमूत्र के औषधिय गुणों पर बात की तो उन पर निशाना साधते हुए कांग्रेस ने उन्हें अयोग्य करार दिया। भाई, विज्ञान की समझ प्रो कामकोटि को अधिक है या कांग्रेसी नेता को? 

Narendra Modi: PM Modi's '2 gaj ki doori' mantra is finding takers among  top world leaders | - Times of India 

सांस्कृतिक दृष्टि से देखें तो, वैश्वीकरण ने हमें दुनिया से जोड़ा है, परंतु इसने हमारी सांस्कृतिक जड़ों को कमजोर करने की भी कोशिश की है। क्या आज का भारतीय युवा अपने लोकगीत, लोककला और भारतीय मूल्यों को उतनी ही गहराई से जानता है, जितना कि वह पश्चिमी संस्कृति को अपनाता है? स्व-तंत्र विकास का अर्थ केवल भौतिक समृद्धि नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण भी है। कोरोना काल में पुरी दुनिया ने भारत के नवाचार और आरोग्य के क्षेत्र में विश्वसनीय पुरूषार्थ को तो देखा ही, ‘हैंड शेक’ की जगह ‘नमस्ते’ के महत्व को भी पहचाना। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव के पश्चात हमारे सांस्कृतिक पुनर्जागरण का सूर्योदय हुआ। आज के युग में सौम्य शक्ति का सर्वाधिक महत्त्व है। भारतीय संस्कृति ही भारत की एकता, स्वतंत्रता और समता के मूल में है। उसकी सौम्य शक्ति को स्व-तंत्र के विकास के द्वारा विस्तार देना होगा। भारत की सांस्कृतिक धरोहर हमारी पहचान है। इसे पुनर्जीवित करना और अगली पीढ़ी तक पहुँचाना हमारा दायित्व है। योग, आयुर्वेद, और भारतीय शास्त्रीय संगीत जैसे खजाने केवल एक व्यवसाय नहीं, बल्कि जीवनशैली बननी चाहिए।  

Image Source: TOI

भारत की शिक्षा प्रणाली को भारतीय मूल्यों और आवश्यकताओं के अनुरूप पुनर्गठित करने की आवश्यकता है। "शिक्षा जो रोजगार दे" से बढ़कर "शिक्षा जो सृजन करे" का मंत्र अपनाना होगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने इस दिशा में कुछ कदम उठाए हैं, परंतु इसे जमीनी स्तर तक ले जाने की चुनौती अभी भी बनी हुई है।  

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Image Source: Jmitra & Co.

हमारी अर्थव्यवस्था का प्रारूप भी पश्चिमी है या यूं कहें मिश्रित है। सकल घरेलू उत्पाद की गणना भी भारतीय समाज के अर्थव्यवहार के अनुरूप नहीं प्रतीत होती। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में आत्मनिर्भरता का अर्थ है स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को पुनर्जीवित करना। "वोकल फॉर लोकल" का नारा केवल एक अभियान नहीं, बल्कि एक आंदोलन बनना चाहिए। हमें अपने ग्रामीण उद्योगों, हस्तशिल्प और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना होगा। छोटे और मझोले उद्यमों को प्रोत्साहित किए बिना आत्मनिर्भरता का सपना अधूरा है। आज जब दुनिया कृत्रिम बुद्धिमत्ता और इंटरनेट ऑफ थिंग्स की दिशा में आगे बढ़ रही है, तो भारत को तकनीकी क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए बड़े कदम उठाने होंगे। "मेड इन इंडिया" को "डिज़ाइन्ड इन इंडिया" में बदलना होगा। वर्तमान केंद्र सरकार ने ‘इंडियन पीनल कोड’ की जगह भारतीय न्याय संहिता लागू कर न्याय-व्यवस्था में स्व-तंत्र की ओर एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया है।  

Bhartiya Nyaya Sanhita- Significance and Concerns- Explained Pointwise  | Viplav Vikas

गणतंत्र दिवस केवल सरकारों की उपलब्धियों को गिनने का दिन नहीं है। एक ऐसा पर्व जो हमें यह याद दिलाता है कि लोकतंत्र की असली शक्ति नागरिकों के हाथ में है। यदि हर नागरिक स्व-तंत्रता के आदर्शों को अपने जीवन में उतारे, तो कोई भी बाधा भारत को विश्वगुरु बनने से नहीं रोक सकती। आज हमें आत्मचिंतन करना होगा कि हम कब तक परानुकरण करते रहेंगे? कब तक पश्चिम की किसी ‘इंडेक्स’ में अपना ‘रैंक’ देखकर प्रसन्न या खिन्न होकर आपसी विवाद की माया में पड़े रहेंगे। हम अपना मानक स्वयं क्यों न तय करें? क्या हमारा गणतंत्र इतना सशक्त, आत्मनिर्भर और न्यायसंगत नहीं है? यह अवसर हमें अपने प्रयासों को पुनर्जीवित और भारतीय तंत्र को पुनर्प्रतिष्ठित करने का आह्वान करता है।  

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यह स्तम्भ दैनिक स्वदेश में 26 जनवरी 2025 को प्रकाशित हुआ।  

 


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