तीर्थराज प्रयाग में महाकुम्भ का अद्वितीय मेला लगा हुआ है। भारतीय राजनीति में भी एक आश्चर्यजनक दौर चल रहा। भारत की राजनीती भी संक्राति काल से हो कर गुजर रही है। आज नेता प्रतिपक्ष का चरित्र और विचारधारा राष्ट्र के समक्ष एक चुनौती बनकर खड़ा है। कांग्रेस के नए मुख्यालय 'इंदिरा भवन' के उद्घाटन पर राहुल गांधी के भाषण ने न केवल उनकी वैचारिक अपरिपक्वता को उजागर किया, बल्कि इस बात की पुष्टि भी की कि वे भारतीय लोकतंत्र और संविधान के मूलभूत सिद्धांतों को समझने में असमर्थ हैं। विगत दो वर्षों से जाति, अडानी, हिंडेनबर्ग जैसे राष्ट्रघाती एजेंडे के इर्द-गिर्द उनकी राजनीती चल रही है या उनको मोहरा बनाकर चलाई जा रही है। कांग्रेस ने महात्मा गांधी के नाम पर स्वाधीनता पश्चात सत्ता पाई, उन्हीं का नाम नए मुख्यालय से हटा दिया! अगर इसका नाम महात्मा गांधी के नाम पर होता, तो कितना बेहतर होता। परन्तु नेहरू से लेकर राहुल तक सभी गाँधी जी के नाम का केवल अपने हित में इस्तेमाल करते हैं और उतना ही सम्मान देते हैं जितना कि भावुक जनता को अपने पक्ष में करने के लिए आवश्यक है। इंदिरा गांधी ने सत्ता और स्वार्थ के लिए भारतीय संविधान पर सबसे बड़ा आघात किया था। आज, राहुल गांधी उसी विरासत को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहे हैं। इंदिरा भवन का उद्घाटन महज एक इमारत का निर्माण नहीं, बल्कि कांग्रेस की विफलताओं और अधिनायकवादी प्रवृत्तियों का प्रतीक है। इमरजेंसी के दौरान लोकतंत्र को कमजोर करने वाली इंदिरा के नाम पर मुख्यालय स्थापित करना कांग्रेस की राजनीति की असलियत उजागर करता है। सत्ता के लिए लोकतंत्र से खिलवाड़ करना कांग्रेस की पुरानी परंपरा है। कोई आश्चर्य नहीं कि अपने हाथ में ‘लाल किताब’ लेकर घूमने वाले राहुल उसे संविधान कहते रहे और महात्मा गाँधी की जगह संविधान की प्रस्तावना तक को बदलने वाली इंदिरा गाँधी के नाम पर कांग्रेस मुख्यालय का नामकरण हो। यहाँ से संचालित कांग्रेस क्या संविधान की रक्षा कर पाएगी या उसे ‘अपने लाल संविधान में’ में बदलना चाहेगी?

राहुल गांधी ने अपने भाषण में भारतीय राज्य के खिलाफ लड़ने का जो आह्वान किया, वह किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में अकल्पनीय है। यह न केवल उनकी खतरनाक मानसिकता को दर्शाता है, बल्कि सिद्ध करता है कि वे अपनी राजनीतिक विफलताओं का दोष भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था पर मढ़ रहे हैं। एक ऐसा नेता, जो स्वयं जनता के बीच अपनी जगह बनाने में असफल रहा है, वह भारतीय राज्य से लड़ने की बात करता है। यह सोच भारतीय संविधान के प्रति एक प्रकार की निष्ठाहीनता को प्रतिबिंबित करती है। राहुल का भाषण यह दर्शाता है कि वे न केवल वर्तमान परिस्थितियों से अनभिज्ञ हैं, बल्कि इतिहास से भी उन्होंने कोई शिक्षा नहीं ली है। भारतीय परंपरा में आलोचना का स्थान है, लेकिन जब आलोचना तथ्यात्मक रूप से गलत और पूर्वाग्रह से प्रेरित हो, तो वह आलोचना नहीं, बल्कि विद्वेष बन जाती है। राहुल गांधी का संघ और भारतीय राष्ट्र-दर्शन के प्रति दृष्टिकोण इसी विद्वेष का प्रतिबिंब है। आज जब भारत आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है, वैश्विक पटल पर अपनी पहचान बना रहा है, तब राहुल गांधी का यह कहना कि वे भारतीय राज्य के खिलाफ लड़ेंगे, उनके राजनीतिक दिग्भ्रम को उजागर करता है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि राहुल गांधी की सोच और भाषण भारत के लोकतंत्र के लिए एक गंभीर चुनौती प्रस्तुत करते हैं। उनकी भाषा से ऐसा लगता है कि भारत के शत्रु का कोई प्रवक्ता बोल रहा है।
राहुल गांधी की अपरिपक्वता भारतीय राजनीति में कोई नई बात नहीं है। उनके हर भाषण, बयान, और कदम यह दिखाते हैं कि वे देश की वास्तविकता से कितने दूर हैं। विदेशों के उदाहरण देने वाले राहुल को समझना चाहिए कि भारत न तो अमेरिका है और न ही यूरोप। यहां की समस्याएं और समाधान विशिष्ट हैं। हिंडेनबर्ग के मालिक ने कोई प्रोजेक्ट न मिलने के बहाने से अपनी कंपनी बंद या यूं कहें भारत जैसे देशों के विरूद्ध एक छद्म आर्थिक युद्ध के हथियार के समर्पण की घोषणा कर दी। क्या नेता प्रतिपक्ष बताएँगे कि उन्होंने इस देश को हिंडेनबर्ग रिपोर्ट के नाम पर भ्रमित क्यों किया? लाखों छोटे-छोटे निवेशकों की गाढ़ी कमाई बर्बाद करने का अधिकार उनके आराजक नीतियों को किसने दिया था? सार्वजानिक रूप से उनका यह कहना कि वे भारतीय राज्य से लड़ेंगे, उनकी लोकतंत्र और संविधान पर उनकी निष्ठा पर सवाल खड़ा करता है। भारतीय राज्य 140 करोड़ नागरिकों की सभ्यता, संस्कृति, और लोकतांत्रिक मूल्यों का प्रतीक है। इसे कमजोर करने का प्रयास राष्ट्र और जनता के प्रति विश्वासघात है। आज भारत आत्मनिर्भरता, वैश्विक नेतृत्व, और लोकतांत्रिक मूल्यों को सुदृढ़ करने की ओर अग्रसर है। ऐसे में भारतीय राज्य से लड़ने की बात न केवल राहुल गांधी की प्रासंगिकता खत्म करती है, बल्कि जिम्मेदार राजनीति के लिए बाधा है। भारत की जागरूक जनता अब ठोस नीतियों और परिणामों की अपेक्षा करती है, मात्र भाषणों से संतुष्ट नहीं होगी। भारतीय लोकतंत्र सत्य और न्याय की रक्षा करता है, और जो इसके खिलाफ खड़े होते हैं, उन्हें असफलता का सामना करना पड़ता है। कांग्रेस और राहुल गांधी को समझना होगा कि लोकतंत्र को कमजोर करने के प्रयास उनके राजनीतिक अस्तित्व के लिए घातक सिद्ध होंगे। विभाजनकारी और हिंस्र विचार से राहुल चर्चा में तो रहते है पर कांग्रेस को संसद-मार्ग से विनाशमार्ग पर दौड़ाने वाले हो चुके है। भारत की सजग जनता भारतीय राज्य से लड़ने वालों से भारत की रक्षा कर लेगी पर क्या विपक्ष और जमीन पर कार्य करने वाले कांग्रेसी राहुल से अपनी रक्षा कर पाएंगे?

यह लेख दैनिक स्वदेस में 19.01.2025 को प्रकाशित हुआ।