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धर्म हिंसा तथैव च: राष्ट्र की सुरक्षा  का मंत्र

2025-05-11  विप्लव विकास

इस सप्ताह भारत ने पहलगाम के आतंकवादी हमले के जवाब में आतंकवादियों के चयनित नौ स्थानों पर हवाई हमला कर उन्हें नष्ट कर दिया। उसके पश्चात पाकिस्तान ने इसे एक युद्ध का रूप दे दिया जिसका समूचित जवाब भारतीय सेना दे रही है। सेना और सरकार अपने-अपने मोर्चे पर प्रभावी और यशस्वी भूमिका पालन कर रहे है। परन्तु भारत में जनमानस को ऐसे संवेदनशील समय में दिग्भ्रमित करने के लिए क‌ई तरह की चर्चाएं चल रही हैं। कुछ लोग इस संघर्ष को समाप्त करने हेतु अपने ही सरकार को ‘डि-एस्केलेट’ करने के लिए कैंपेन कर रहे हैं। मिडिया, यूट्यूब चैनल्स और वेबपोर्टल के माध्यम से सूचनाओं को विकृत किया जा रहा है। कुछ लोग ये भी कह रहे हैं कि हमलोग अहिंसा के पुजारी हैं। हम मानवतावादी हैं। सही है, हम अहिंसा और मानवता के सिद्धांत पर अडिग हैं। पर जहां ‘अहिंसा परमो धर्म:’ कहा है वहीं हमारे शास्त्र ‘धर्म हिंसा तथैव च’ भी कहते हैं। 

 

आज के समय जब संपूर्ण देश एक निर्णायक युद्ध के लिए मानसिक रूप से प्रस्तुत है तब हमें शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से जो संघर्ष शुरू हो गया है उसे अपेक्षित परिणाम तक पहुंचाने हेतु जन-मन को "धर्म हिंसा तथैव च" के सूत्र का भी परिपालन करने के लिए प्रस्तुत करना होगा। यह सूत्र भारतीय दर्शन की उस गहराई को प्रकट करता है जिसमें धर्म की रक्षा के लिए युद्ध को भी धर्म का ही अंग माना गया है। यह उक्ति महाभारत के भीष्म पर्व में युधिष्ठिर और भीष्म के संवाद में प्रतिपादित है, जिसमें स्पष्ट कहा गया है कि यदि धर्म और राष्ट्र पर संकट आए, तो हिंसा भी धर्म का ही स्वरूप बन जाती है। भारतीय संस्कृति में यह समझ हमेशा से रही है कि शांति की स्थापना तभी संभव है जब अन्याय का समूल नाश हो। 

 

हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर के विरोध में वामपंथी विचारधारा ने "युद्ध समाधान नहीं है" जैसे नारे बुलंद किए। यह वही जमात है जो कुछ समय पूर्व पाकिस्तान पर भारतीय सरकार की नीतियों को कमज़ोर ठहराते हुए युद्ध की माँग कर रही थी। यह दोहरा चरित्र दर्शाता है कि उनका विरोध किसी सिद्धांत पर आधारित नहीं है, बल्कि राजनीतिक स्वार्थ और अवसरवादिता से प्रेरित है। 

 

वास्तव में, यही जमात बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक के समय सरकार पर हमला करते हुए यह आरोप लगा रही थी कि पाकिस्तान को सही उत्तर नहीं दिया जा रहा। अब जब ऑपरेशन सिंदूर ने पाकिस्तान के नापाक इरादों पर चोट की, तो वही लोग शांति की दुहाई देने लगे। यह विचारधारा का वह अंतर है जो भारत की संप्रभुता और सुरक्षा को लेकर उनके दृष्टिकोण को उजागर करता है। 

 

 

भारत की सांस्कृतिक परंपरा सदैव ही धर्म, न्याय और सत्य की रक्षा के लिए आवश्यक संघर्ष का समर्थन करती रही है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में स्पष्ट कहा है ,  "परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।" अर्थात् सज्जनों की रक्षा और दुष्टों के नाश के लिए ही अवतार लिया जाता है। यह कोई आक्रामक विचारधारा नहीं है, बल्कि यह सिद्धांत उन मूल्यों की रक्षा के लिए है जिन पर समाज और राष्ट्र का आधार टिका है। 

 

भारत का इतिहास बताता है कि जब-जब धर्म की रक्षा हेतु युद्ध अनिवार्य हुआ, भारतीय वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी एवं शत्रुओं का विनाश किया। चाहे वह महाराणा प्रताप का हल्दीघाटी युद्ध हो या छत्रपति शिवाजी महाराज का मुगलों के खिलाफ संघर्ष। इन युद्धों का उद्देश्य मात्र भौतिक विजय नहीं था, बल्कि धर्म और संस्कृति की रक्षा करना था। 

 

 

वामपंथी विचारधारा अक्सर "डि-एस्केलेशन" की बात करती है, जो पश्चिमी रणनीतिकारों की परिकल्पना है। किंतु भारतीय परिप्रेक्ष्य में शांति सदैव शक्ति से उत्पन्न होती है, न कि समर्पण से। इतिहास साक्षी है कि जहाँ-जहाँ भारत ने आक्रामकता का उचित प्रतिकार किया, वहाँ-वहाँ स्थायी शांति स्थापित हुई। चाहे वह 1971 का युद्ध हो या हाल ही में बालाकोट की सर्जिकल स्ट्राइक। शांति की कामना केवल शक्ति के संतुलन से ही संभव है, न कि आत्मसमर्पण से। 

 

यह केवल भौतिक युद्ध नहीं है, बल्कि एक वैचारिक संघर्ष भी है। एक ओर भारतीय संस्कृति धर्म, न्याय और राष्ट्र की रक्षा के लिए युद्ध को भी धर्म मानती है, वहीं दूसरी ओर वामपंथी विचारधारा इसे केवल साम्राज्यवाद और विस्तारवाद का प्रतीक मानती है। यह मूलभूत अंतर ही बताता है कि भारतीय संस्कृति में युद्ध अंतिम विकल्प होते हुए भी धर्म और न्याय की स्थापना के लिए आवश्यक साधन माना गया है। "धर्म हिंसा तथैव च" का हमारा सिद्धांत भारतीय समाज को अन्याय और अधर्म के विरुद्ध खड़ा होना ही वास्तविक धर्म है का स्पष्ट संकेत करता है। ऑपरेशन सिंदूर जैसे सैन्य अभियानों का विरोध करने से पहले यह समझना आवश्यक है कि यदि राष्ट्र की सीमाएँ सुरक्षित नहीं हैं, तो कोई भी विचारधारा जीवित नहीं रह सकती। 

 

 जो लोग ऑपरेशन सिंदूर का विरोध कर रहे हैं या जनमानस को भ्रमित कर रहे हैं, वे यह भूल जाते हैं कि यह भारत ने किसी पर आक्रमण नहीं किया, बल्कि पाकिस्तान द्वारा निरंतर किए जा रहे हमलों और सीमापार आतंकवाद के जवाब में यह कदम उठाया गया। हमारे निर्दोष नागरिकों पर हमले, हमारे सैनिकों का बलिदान और हमारी सीमाओं पर होने वाले अतिक्रमण का उत्तर देना हमारा नैतिक और संवैधानिक अधिकार है। भारतीय सेना ने ऑपरेशन सिंदूर के माध्यम से यह स्पष्ट संदेश दिया है कि भारत शांति का पक्षधर है, परंतु अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है। जिन लोगों को युद्ध से समस्या है, उन्हें सबसे पहले पाकिस्तान के आतंकी मंसूबों और घुसपैठ पर आपत्ति होनी चाहिए। भारत की सैन्य कार्यवाही उसकी आक्रामकता का नहीं, बल्कि उसकी आत्मरक्षा और राष्ट्रीय सम्मान की प्रतिबद्धता का प्रतीक है। भारतीय संस्कृति "धर्म हिंसा तथैव च" के सिद्धांत पर आधारित है, जहाँ अधर्म का नाश करना ही धर्म का पालन करना है। इसलिए ऑपरेशन सिंदूर न केवल उचित है, बल्कि भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से अनिवार्य भी। 

 

Operation sindoor , विप्लव विकास , सुनो भाई साधो

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