विप्लव विकास: भारतीय विचारक, स्तंभकार, लेखक, शोधकर्ता और पुस्तक प्रेमी, जो सांस्कृतिक विचारों और पुस्तकों के प्रति अपने प्रेम से लोगों को प्रेरित करते हैं।
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प्रेम का यह बाजारीकरण केवल उपभोक्तावाद को बढ़ावा नहीं देता बल्कि धीरे-धीरे प्रेम की परिभाषा को वासना और शारीरिक अंतरंगता की ओर मोड़ रहा है। यह परिवर्तन विशेष रूप से भारत जैसे देश के लिए चिंताजनक है, जहाँ प्रेम को आत्मिक संबंध और पवित्रता से जोड़ा गया है। बाजार के दबाव के चलते यह विचार थोप दिया गया है !
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आने वाले दशकों में भारतीय पहचान और अस्तित्व पर समस्या अवश्यंभावी है। भारत भी अमेरिका की तरह घुसपैठियों को बाहर निकाले और अपने नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करे। ब्लूमबर्ग के अनुसार 2023-24 में बाइडेन प्रशासन ने लगभग 1100 भारतीयों को वापस भेजा था। ट्रंप भी भेज रहे हैं। अनुप्रवेशकारी जमात किसी भी घोषित शत्रु से अधिक खतरनाक है। इनका चिन्हिकरण और निर्वासन पर भारत सरकार को युद्धगति से से काम करना चाहिए
आप अपने मोबाइल पर कुछ खोजते हैं, और कुछ ही क्षणों में आपके सोशल मीडिया फीड, न्यूज़ वेबसाइट और यूट्यूब अनुशंषाएं उसी विषय से भर जाती हैं। यह संयोग नहीं है, बल्कि एआई का अदृश्य जाल है जो आपकी रुचियों, विचारों और व्यवहार को नियंत्रित करने की कोशिश करता है। जब एआई हमारी सोच, प्राथमिकताओं और हमारी लोक चेतना को गढ़ने लगे, तब चिंतन आवश्यक है—हम अपनी बौद्धिक सम्प्रभुता कैसे सुरक्षित रख सकते है?
स्व-तंत्र विकास का अर्थ है व्यक्तिगत और सामूहिक स्तर पर भारतीय स्वत्त्व के आधार पर सार्विक आत्मनिर्भरता की प्राप्ति। यह केवल आर्थिक आत्मनिर्भरता नहीं, बल्कि मानसिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक और तकनीकी स्वतंत्रता का भी पर्याय है। आज भारत डिजिटल युग में प्रवेश कर चुका है, परंतु क्या यह डिजिटल तंत्र हमारा है? क्या हमारी जनता को भारतीय ‘सर्च इंजन’, ‘सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म’ मिला है?
राहुल गांधी ने अपने भाषण में भारतीय राज्य के खिलाफ लड़ने का जो आह्वान किया, वह किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में अकल्पनीय है। यह न केवल उनकी खतरनाक मानसिकता को दर्शाता है, बल्कि सिद्ध करता है कि वे अपनी राजनीतिक विफलताओं का दोष भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था पर मढ़ रहे हैं। एक ऐसा नेता, जो स्वयं जनता के बीच अपनी जगह बनाने में असफल रहा है, वह भारतीय राज्य से लड़ने की बात करता है।
राष्ट्रीय युवा दिवस के अवसर पर, हमें स्वामी विवेकानंद को केवल स्मरण नहीं करना चाहिए, बल्कि उनके विचारों को आत्मसात करने का भी प्रयास करना चाहिए। उनका जीवन और उनके विचार हमें यह सिखाते हैं कि जब तक हमारे भीतर साहस, संकल्प और सेवा की भावना जीवित है, तब तक कोई भी शक्ति हमें अपने लक्ष्यों से विचलित नहीं कर सकती। स्वामी विवेकानंद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वह अप्रत्यक्ष सूत्रधार थे।
पश्चिम बंगाल में पिछले एक दशक से हिन्दू समाज की पहचान धूमिल कर, उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक बनाया जा रहा है। विभाजनकारी राजनीति और वामपंथी विमर्श ने हिन्दू एकता को कमजोर किया है, जबकि एकनिष्ठ पहचान वाले समुदाय कानून से परे सुरक्षित हैं।
"जानिए क्यों 'The Economist' द्वारा बांग्लादेश को 'कंट्री ऑफ द ईयर' का खिताब देने की हकीकत विवादित है। पढ़ें वास्तविकता, आँकड़े, और अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार की पूरी कहानी। कुछ लोगों ने तो इसे Joke of the year कह दिया है। विप्लव उवाच में विप्लव की टिपण्णी आपकी प्रतीक्षा कर रही है।
आइए इस साल का क्रिसमस एक नए संकल्प के साथ मनाएं—"धरती को हरित और खुशहाल बनाने का।" यह संकल्प न केवल हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए तोहफा होगा, बल्कि असली त्योहारी खुशी भी तभी होगी, जब हम अपने पर्यावरण के साथ सामंजस्य बिठाकर जिएं।
हमने जो देखा वो पहली बार देख रहे थे। चौराहे पर लड़के-लड़कियां एक-दूसरे को पकड़ कर चुम्मा ले रहे थे। गाल पर नहीं होंठों पर! "ये क्या हो रहा दादा?" पूछने पर बगल वाला भी भौंचक्का था। उसे भी नहीं पता! पूरी भीड़ इकट्ठी हो कर उन 40-50 लोगों की चुम्मा-चुम्मी देख रही थी। फिर मेरी नज़र यूनिवर्सिटी की बांउड्री पर अपने भाग्य पर इठलाती प्लेकार्ड पर गई। लिखा था - KISS OF LOVE CAMPAIGN
विजय दिवस के अवसर पर जब हम बांग्लादेश की स्वाधीनता की गाथा का स्मरण करते हैं, तब यह आवश्यक हो जाता है कि हम संघ के उन मौन तपस्वियों के त्याग और कर्तव्यनिष्ठा को नमन करें, जिन्होंने युद्धकाल में राष्ट्र की आवश्यकताओं को आत्मसात कर अपने राष्ट्रीय दायित्वों का अद्वितीय निर्वहन किया।